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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


आज दिसम्बर महीने की सातवीं तारीख है। कल दोपहर को अयोध्या में सरयू नदी के किनारे घना अंधकार उतर आया। कार सेवकों द्वारा साढ़े चार सौ वर्ष पुरानी एक मस्जिद तोड़ दी गयी। विश्व हिन्दू परिषद द्वारा घोषित कार सेवा शुरू होने के पच्चीस मिनट पहले यह घटना घटी। कार सेवकों ने करीब पाँच घंटे तक लगातार कोशिश करके तीन गुम्बद सहित पूरी इमारत को धूल में मिला दिया। यह सब भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिन्दू परिषद, आर. एस. एस. और बजरंग दल के सर्वोच्च नेताओं के नेतृत्व में हुआ और केन्द्रीय सुरक्षा वाहिनी, पी. ए. सी. और उत्तर प्रदेश पुलिस निष्क्रिय खड़ी-खड़ी, कार सेवकों का अविश्वसनीय तांडव देखती रही। दोपहर के दो बज कर पैंतालीस मिनट पर एक गुम्बद तोड़ा गया। चार बजे दूसरा गुम्बद तोड़ा गया, चार बजकर पैंतालिस मिनट पर तीसरे गुम्बद को भी कार सेवकों ने ढहा दिया। इमारत को तोड़ते समय चार कार सेवक मलवे में दबकर मर गये और सौ से अधिक घायल हुए।

सुरंजन बिस्तर पर लेटे-लेटे ही अखबार के पन्नों को उलट रहा था। आज के सभी अखबारों की बैनर हैडिंग है-बाबरी मस्जिद का ध्वंस, विध्वस्त। वह कभी अयोध्या नहीं गया, बाबरी मस्जिद नहीं देखी। देखेगा भी कैसे, उसने तो कभी देश से बाहर कदम रखा ही नहीं। राम का जन्म कब हुआ था और मिट्टी को खोदकर कोई मस्जिद बनी या नहीं, यह उसके लिए कोई मतलब नहीं रखता लेकिन सुरंजन यह मानता है कि सोलहवीं शताब्दी के इस स्थापत्य पर आधात करने का मतलब सिर्फ भारतीय मुसलमानों पर ही आघात करना नहीं बल्कि सम्पूर्ण हिन्दुओं पर भी आघात करना है। दरअसल, यह सम्पूर्ण भारत पर, समग्र कल्याणबोध पर, सामूहिक विवेक पर आघात करना है। सुरंजन समझ रहा है कि बांग्ला देश में बाबरी मस्जिद को लेकर तीव्र तांडव शुरू हो जायेगा, सारे मन्दिर धूल में मिल जायेंगे। हिन्दुओं के घर जलेंगे। दुकानें लूटी जायेंगी। भारतीय जनता पार्टी की प्रेरणा से कार सेवकों ने वहाँ बाबरी मस्जिद को तोड़ कर इस देश के कट्टर कठमुल्लावादी दलों को और को मजबूत कर दिया है। विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगी दल क्या यह सोच रहे हैं कि उनके उन्मत्त आचरण का प्रभाव सिर्फ भारत की भौगोलिक सीमा तक ही सीमित रहेगा? भारत में साम्प्रदायिक हंगामे ने व्यापक आकार धारण कर लिया है। मारे गये लोगों की संख्या पाँच सौ, छह सौ, हजार तक पहुँच गयी है। प्रति घंटे की रफ्तार से मृतकों की संख्या बढ़ रही है। हिन्दुओं के स्वार्थरक्षकों को क्या मालूम नहीं है कि कम-से-कम दो ढाई करोड़ हिन्दू बंगलादेश में हैं? सिर्फ बंगलादेश में ही क्यों, पश्चिम एशिया के प्रायः सभी देशों में हिन्दू हैं। उनकी क्या दुर्गति होगी, क्या हिन्दू कठमुल्लों ने कभी सोचा भी है? राजनैतिक दल होने के नाते भारतीय जनता पार्टी को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि भारत कोई 'विच्छिन्न जम्बू द्वीप' नहीं है। भारत में यदि विष फोड़े का जन्म होता है तो उसका दर्द सिर्फ भारत को ही नहीं भोगना पड़ेगा, बल्कि वह दर्द समूची दुनिया में, कम-से-कम पड़ोसी देशों में तो सबसे पहले फैल जायेगा।

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