कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
|
5 पाठकों को प्रिय 3465 पाठक हैं |
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
लेकिन
उसके भतीजे की पुत्रवधू रमोला क्या सचमुच में कोई ऐसी-वैसी औरत है जो मौसी
को बराबर तंग करती रहती है। और तभी उसके लिए घर में टिकना मुश्किल हो जाता
है। नहीं, ऐसा नहीं है। पढ़ा-लिखी औरत है। नौकर-चाकर से भी कभी 'तू-तड़ाक'
कर बातें नहीं करती। अपनी मोसिया सास को उसने कभी भी, बुरा-भला कहा हो-ऐसा
नहीं जान पड़ता। कोई है जो यह साबित कर सके?
नहीं,
कैसे नहीं भला! और यही सब तो झेला नहीं जा सकता। जो कहना है मुँह पर कह
दो। एकदम साफ-साफ। जो सहज है, स्वाभाविक हे और समझ में आ जाए-ऐसी बात।
इससे कुछ तो पल्ले पड़ता है। और बात का जवाब भी दिया जा सकता है। और बातों
को बतंगड़ बनाने वाली इस सीधी-सादी दीख पड़ने बाली लड़ाई में और कोड जीते या
न जीते...अन्ना मौसी की जीत सोलह आने तय है।
लेकिन यह क्या?
दूसरे
को मुँहतोड़ जबाव देने के बदले रमोला के चेहरे पर हर घड़ी एक बेजुवान-सी
कड़वाहट और तिक्तता क्यों तैरती रहती है? यह उसका बड़ा निष्ठुर खेल है। उसके
चेहरे पर तिरने वाली एक-एक भाव-रेखा जैसी बड़ी झूँझल और विरक्ति भरी
अवमानना से प्रश्न किया करती, ''कौन है तू...? यहाँ क्यूँ है भला तू! सारी
जिन्दगी यहीं टिके रहने की आस लगाये बैठी है?''
अन्ना
मौसी भले ही अनपढ़ हो लेकिन वह इस भाषा को पढ़ सकती है। पर वह यह नहीं
जानती कि इस भापा में छुपे सवालों का जबाव वह कैसे दे? इन दबे-छिपे हमलों
के सामने अपनी हार स्वीकार करने के सिवा उसके पास और कोई चारा नहीं है।
तभी तो इतनी जलन है उसके
सीने में।
और
यही वजह है कि जाने-अनजाने या किसी नौकर-नौकरानी या घर के नन्हे-मुन्नों
से हो गयी किसी चूक या गलती के बहाने उसे यह तूफान खड़ा करना पड़ता है। इस
जंग लगे पुराने बक्से के सिवा अन्ना मौसी के पास और भला है भी क्या? किसी
मुठभेड़ के आधुनिक हथियार से वह अपने को कैसे लैस कर सकती है? और आज जब
अचानक एक नटखट बच्चे का पाँव उसके ऊपर पड़ गया तो वह अपने को बड़ा आहत महसूस
कर रही है और घण्टे भर से चीख-चिल्ला रही है।
|