कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
प्रश्न
: आपको क्या लगता है कि इस भावबोध के जगाये रखने में आपकी कहानियाँ अधिक
सहायक रही हैं या आपके उपन्यास?
उत्तर
:
कहानियों में गहन और सघन क्षण मुखरित होते हैं। और ये मुझे अधिक प्रिय
हैं। पाठकों ने भी इसमें रस लिया है। अगर कोई कहानी मेरे मन के अनुकूल
लिखी गयी हो, सार्थक जान पड़े तो मेरे आनन्द की सीमा नहीं होती। यह
प्रसन्नता किसी बृहत उपन्यास को समाप्त करने की खुशी से कुछ कम नहीं होती।
कम-से-कम मेरे लिए। बृहत में अगर 'निर्माण' की सफलता की प्रसन्नता होती है
तो छोटी कहानियों में 'सृष्टि' का आनन्द या आल्हाद।
प्रश्न
:
यह
प्रसन्नता या कि आनन्द वस्तुगत है या आत्मगत?
उत्तर
: एक
रचनाकार के लिए जीवनगत और रचनारत होकर जीना ही सबसे बड़ा गौरव है। समाज
द्वारा प्राप्त सम्मान इस प्रसन्नता को द्विगुणित करता है। समाज या संस्था
भी जीवन के ही अनुषंग या पूरक हैं। और मेरे लिए सबसे मूल्यवान क्षण तब रहा
है जब जीवन और रचना एक-दूसरे के परिपूरक हो उठते हें-इनमें से कौन कब
महत्त्वपूर्ण हो जाएगा, यह नहीं कहा जा सकता। वे एक-दूसरे को समृद्ध और
धन्य कर सकें और समाज में स्थान पा सकें-यही उनकी सार्थकता है। जहाँ तक
मेरा प्रश्न है, लम्बे समय तक साहित्य-सृजन के दौरान ऐसा भी हुआ है कि
हताशा और निराशा मिली है लेकिन मैंने इस हास और पतन को जीवन का अन्तिम
वक्तव्य कभी नहीं माना। मैं जानती हूँ कि अतृप्ति के साथ-साथ पूर्णता भी
है। यही समग्रता जीवन की रिक्तता और तिक्तता को पूर्णता प्रदान करती है।
वैसे अन्य रचनाकारों की तरह मैं भी न तो पूरी तरह सफल हूँ और न ही पूरी
तरह सन्तुष्ट।
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