लोगों की राय

कहानी संग्रह >> किर्चियाँ

किर्चियाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :267
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 18
आईएसबीएन :8126313927

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

3465 पाठक हैं

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह


गाड़ी जब श्रीरामपुर पहुँच रही थी तो वह भला आदमी भी, जिस पर काफी चर्चा होती रही थी, अखबार मोड़कर उठ खड़ा हुआ। उसने सूटकेस को बायें हाथ से उठाया और दाहिने हाथ मैं तह किया अखबार देवेश की तरफ वढ़ाकर मुस्कराया। आँखें मिलीं तो उसने तपाक से पूछा, ''पढ़ेंगे?''

उस आदमी की भद्रता के उत्तर में देवेश ने भी बड़े सौजन्य से मुस्कराया और बोला, ''नहीं....इसकी अब जरूरत नहीं पड़ेगी। वस हम भी थोड़ी देर में उतर जाएँगे।''

चौड़े काले फ्रेम वाले चश्मे में खड़े इस लम्बे-चौड़े आदमी की मुस्कान उसके चेहरे पर बड़ी जँच रही है। इस मुस्कान को बार-बार देखने की इच्छा होती है। उसकी वही खूबसूरत-सी हँसी फिर एक सवाल करती है....''आप जा कहीं रहे हैं?''

''चन्दन नगर....मामा के यहाँ।''

''मामा के घर....फिर तो बडी प्यारी जगह जा रहे हैं?''

ऐसा जान पड़ा कि अचानक अन्धकार का पर्दा नीचे...सरक गया है....ठीक वैसे ही जैसे खिड़की के खुल जाने पर कमरे में प्रकाश फैल जाता है। अतीत की स्मृतियों को झकझोर देने वाली बिजली कौंध-सी....!

नहीं....अब शक की कोई गुंजाइश नहीं।

यह अशोक ही है।

दाहिनी भौंह के ऊपर काला और चमकीला तिल एकदम साफ नजर आ रहा है।

एटल तिल भी....क्या कोई छोटी-सी चीज है? एक भूले-विसरे चेहरे की पहचान करा देने के लिए वह काफी नहीं? हालाँकि, अलका उस तिल को बरावर देखती रही थी लेकिन उस तिनके का सहारा पाकर भी वह यह नहीं समझ पायी थी कि वह कोई

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book