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आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :267
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 18
आईएसबीएन :8126313927

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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह


बीमार तारकनाथ को जल्दी नींद नहीं आती।

दिन-भर के काम और तमाशे से थकी अनुपमा क्षण-भर में सो गयी।...शायद अभिनय में एकदम खरी ठीक उतरी थी, इसलिए।

अभिनय?

नहीं तो क्या? बड़ा ही मँजा हुआ अभिनय। इतना सहज कि वह अभिनय जान ही नहीं पड़ता। यह समझना असम्भव है कि कौन-सा असली है कौन कौन बनावटी।

लेकिन अकेली अनुपमा ही क्यों? नारी मात्र ही क्या अभिनेत्री नहीं है? अभिनय की क्षमता ही तो उसके जीवन का मूल धन है। जन्म से ही प्राप्त इस पूँजी से उसका सारा काम-काज होता है।

शायद ये सारी बातें गलत हों? उसका कोई भी अभिनय नहीं। नारी प्रकृति में सदा से ही पास-पास रहती आयी हैं दो अलग-अलग इकाइयाँ-जननी और प्रिया। इस मामले में वह स्वयं सम्पूर्ण है।

ममतामयी नारी अपनी इन दो अलग-अलग भूमिकाओं की ओट में बड़े जतन से उस चिरशिशु पुरुष को सहारा और सहयोग देती आयी है।

* * *

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