कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
और
छवि की उस पत्थर-सी मूर्ति की ओर देखते हुए अमल बहुत दिनों से भूली हुई एक
मूर्खता कर बैठा। बिलकुल पास आकर उसने छवि का हाथ पकड़ लिया जो दरवाजे पर
था। बोला, ''छवि, बत्ती तो जलाओ।''
छवि ने धीरे-से हाथ छुड़ा
लिया।
बोली, ''क्या होगा उससे?''
''मैं देखूँगा।''
''देखने को कुछ नहीं है,
अमल!''
''अपने को इतना काबिल मत
समझो, छवि! दरवाजे के सामने से हट जाओ, मुझे अन्दर जाने दो।''
फिर भी छवि नहीं हटी। वह
उसी तरह डेंटी रही और बोली, ''सचमुच ही देखने को कुछ नहीं है, अमल!''
और अब तक अमल भी क्या
भुतहा हो गया? देखने में अमल क्यों ऐसा लग रहा है?
क्या
अमल भूल गया है कि इतनी लम्बी अनुपस्थिति पर लोग उसके बारे में क्या कुछ
सोच रहे होंगे? उन दोनों के बचपन के किस्से क्या लोग भूल गये हैं? काफी
देर के बाद अमल को शायद याद आया कि नीचे भी एक दुनिया है। उसे नीचे वापस
जाना है। इसीलिए बोला, ''छवि, यह सब हुआ कैसे?''
अजीब
और टूटे-फूटे स्वर में छवि बोली, ''पागल का पागलपन है और क्या? 'साले ने
मुझे खाने नहीं दिया' कहकर अपना सिर पीटने लगे...मुट्ठियों से...''
''छवि, क्या तुम पत्थर हो
गयी हो?''
"शायद।''
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