कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
ओर ऐसा होना कुछ आश्चर्य
की बात भी नहीं थी।
सतीनाथ नीचे उतर आये।
उन्होंने बड़े रूखे ढंग से इतना ही कहा, ''जिसके मन में चोर हो, वही ऐसा कर
सकता है।''
तभी ऊपर अमल आ गया।
उसने
आखिरी पांत को खिलाने-पिलाने का जिम्मा लिया है। और इधर एक साधारण-सी लड़की
की धनुष भंग वाली जिद के कारण घड़ी की छोटी सूई बारह से एक पर आ गयी है।
वह
इन लोगों का नाते-रिश्तेदार कुछ भी नहीं है, पड़ोसी भर है। इस तरह की
जिम्मेदारी सिर पर लादने की कोई वजह भी नहीं। लेकिन आदतन ही सही, ले ली
है। लेकिन रात इतनी अधिक होने को आयी तो खुद उसके घर वाले क्या सोचेंगे?
सीढ़ी पर सतीनाथ से टक्कर होते-होते बची।
सतीनाथ ने एक बार आँख
उठाकर देखा, फिर खीज, उलाहने और मजाक के स्वरों में बोले, ''ओह, लगता है
तुम्हीं बाकी थे।'' और नीचे उतर गये।
पड़ोस
का लडका है...जाना-पहचाना। इसमें हैरान होने की कोई बात नहीं थी। लेकिन
किसी तरह की कोई उम्मीद नहीं थी। खुद अमल को भी आशा नहीं थी। वैसे वह सब
कुछ सुन चुका था। सारी घटना भी और उस बारे में होने वाली अच्छी-बुरी बातों
से भी वह परिचित था। इसीलिए अमल को अपने पर भरोसा नहीं था। फिर भी उसे
कौतूहल हो रहा था कि एक बार कोशिश कर देखे तो सही कि इतनी जिद पर उतारू
छवि देखने में केक लगती है? इसीलिए अमल अपने आपको रोक न पाया था।
छवि कमरे का दरवाजा वन्द
करने जा रही थी। यह सोचकर कि अब शायद आराम से लेटा जा सकेगा।
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