कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
|
5 पाठकों को प्रिय 3465 पाठक हैं |
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
नन्दा ने तभी एक गहरी
उसाँस भरी और मीठी चुटकी लेते हुए कहा''अभी ऊपर कमरे में जाकर क्या करोगी
स्तूप?''
आभा अपना मुँह झुकाये
पनबट्टे में पता नहीं क्या ढूँढ़ती रही।
अपर्णा ननद के इस सवाल को
सुनकर घड़ी भर चुप रही-फिर बोली, ''और करूँगी भी क्या? अट्टा गोटी
खेलूँगी।''
''हां, ठीक ही कहा तुमने।
कुमार भैया की भी यह कैसी मति-गति है कि साँझ ढली नहीं कि घर से गायब।''
उसकी झीनी-सी मुस्कान अब
बहुत दबी-छिपी नहीं थी। लेकिन आभा अपनी आंखें ऊपर उठाती तो कैसे? वह
पान-मसाला ही ढूँढ़ती रही।
''और दीदी, यह सब तुम
पहली ही बार देख रही हो...है न?''
अपर्णा ने तो बड़ी घाघ
बुद्धि से सवाल को उलट दिया।
नन्दा
का चेहरा फक पड़ गया लेकिन उस पर बनावटी मुस्कान लाती हुई वह बोली, ''अब वह
पहले वाली बात जाने दो। जवानी के दिनों की बात और है। तब इस तरह के
मौज-मस्ती के अड्डे छोकरे लोग जमाया करते ही हैं। घर-संसार का बोझ कन्धे
पर है। अब यही देखो न, इतने-इतने रुपये लुटाकर बच्चों के लिए घर में
मास्टर बहाल करना। ठीक है, घर में ढेर सारा रुपया है लेकिन माँ लक्ष्मी तो
इस तरह लुटायी जाने वाली चीज नहीं हैं। वह अगर शाम को बच्चों की
पढ़ाई-लिखाई खुद देख ले तो इस लूट को रोका जा सकता है कि नहीं।''
अपर्णा
को राह चलते-चलते ही जैसे कोई खजाना मिल गया हो। उसने बड़े उत्साह से कहा,
''ओ माँ, तुमने ठीक ही बताया, दीदी! इतने दिनों से होने वाले घाटे पर तो
कभी नजर पड़ी ही नहीं। ठीक है और ही कुछ तय करना पड़ेगा।''
''ठीक है लेकिन इसमें
मेरा नाम-धाम मत लेना।''
''दिमाग खराब हुआ है, मैं
भला ऐसा क्यों करने लगी?''
नन्दा
अचानक जैसे अबोध बालिका हो गयी। बड़े ही भोलेपन से उसने पूछा, ''भले ही
सारी दुनिया उलट-पलट जाए लेकिन यह नियम नहीं टूटता। आखिर कुमार भैया जाते
कहाँ हैं?''
|