कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
|
5 पाठकों को प्रिय 3465 पाठक हैं |
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
एक लड़का तेजी से आगे बढ़
गया।
बलराम
ने तीन रिक्शों को स्टेशन जाने के लिए ठीक किया।....नहीं....अपने साथ किसी
को बिठाने की जरूरत नहीं।....अगर टेंट के साथ छेड़खानी करे।
उफ....अच्छी मुसीबत है...।
हे
भगवान! आगे की तरफ बढ़ गये रिक्शों पर सवार ये छोकरे अगर जो कहीं झूठे और
उचक्के हों। मुमकिन है ये सब शशि कुण्डु के घर के लड़के हैं।....कहने को तो
कह रहे हैं कि पास वाले घर में ही रहते हैं लेकिन पुकार तो रहे हैं शशि
कुण्डु...शरत कुण्डु...। एक टोले-मोहल्ले में ऐसा भी कहीं होता है? लोग
एक-दूसरे को आदर और प्यार से बुलाते हैं। बहुत लाग-लपेट न भी हो लेकिन
भैया....चाचा....ताऊ कहकर तो बुलाते ही हैं।
...न्न...ये सब स्साले
मतलबी हैं।
भगवान करे ऐसे ही हों।
लेकिन
बलराम साहा को ठग नहीं पाएँगे।....यह ठीक है कि मारे घबराहट के इन सबके
साथ जाना पड़ रहा है लेकिन ये उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएँगे। बिटिया रानी के
लिए जी पहले से ही बेचैन हो उठा था इसलिए इनके साथ निकल पड़ा। हे माता
आनन्दमयी....माँ काली! वहाँ पहुँचकर मैं अपनी बिटिया फुलिया को राजी-खुशी
देख पाऊँ। वापसी के समय तुम्हारे थान पर छेने वाला सन्देश1 चढ़ाता आऊँगा।
बलराम ने अपनी टेंट को अपनी उँगलियों से टोह लिया और मन को मजबूत कर तनकर
बैठ गया।
------------------
1. बंगाल की प्रसिद्ध
मिठाई-जो दूध से बनती है।
|