कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
|
5 पाठकों को प्रिय 3465 पाठक हैं |
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
बहुत सम्भव है उत्साह का
अभाव सविता के उसी आदेश का परिणाम है। और सचमुच...यह सविता का आदेश ही था।
''लेकिन
एक आदेश या अंकुश...किसी भी तरह सै तुम्हारी उस नायिका को विरहनी, दुखिया
और प्रेमवंचित विवाह की तकलीफों से हमेशा के लिए चिर-विषादिनी नहीं बना
सकेगी। ऐसा तुम नहीं कर पाओगे।''
''नहीं कर पाऊँगा?''
''कभी नहीं...तुम्हारी
नायिका होगी हर तरह से सुखी, सन्तुष्ट, हँसती-गाती मुस्कराती और...''
सरोजाक्ष
ने हँसते हुए कहा था, ''तो फिर लिखने का उद्देश्य ही क्या है? प्लाँट की
जरूरत ही क्या है।...एक बार एक लड़की और लड़के में प्यार हुआ...जबरदस्त
प्यार...घमासान...और घनघोर प्यार। लेकिन जैसा कि होता आया है दोनों में
शादी नहीं हुई। लड़की के बाप ने लड़के के बाप से कहा...''
''ओह...तो
फिर इसे जैसा भी हो...जोड-तोड़ कर लिखो न बाबू। और सब कुछ एकदम वैसा ही
लिखना होगा...ऐसी तो कोई शर्त नहीं...पिताजी अब भी जीवित हैं'', सविता ने
झनझनाती आवाज में कहा था।
''ठीक
है फिर तो ऐसा ही है कि एक कल्पित कहानी ही गढ़ी गयी,'' सरोजाक्ष ने कहा
था,'' शादी नहीं हुई-कहना तो यही था...है न...? मान लिया, दोनों में विवाह
नहीं हुआ लेकिन लड़की की शादी कहीं और हो गयी...चट मँगनी और पट ब्याह। डधर
उस अभागे और प्रेम में ठोकर खाये युवा प्रेमी ने गुस्से में आकर विवाह ही
नहीं किया। दुनिया क्या है...एक मजाक है जैसी दार्शनिक मुद्रा ओढ़े उसने
हास्य और व्यंग्य की कहानियाँ लिखना शुरू कर दिया।
''खबरदार...''
सविता ने बीच में टोक दिया था, ऐसा मत लिखना...फिर तो रंगे हाथों पकड़े
जाओगे...नायक को गायक...वादक जाति का प्राणी बनाना होगा...वर्ना...''
|