लोगों की राय

नई पुस्तकें >> औघड़ का दान एवं अन्य कहानियाँ

औघड़ का दान एवं अन्य कहानियाँ

प्रदीप श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16994
आईएसबीएन :9781613017753

Like this Hindi book 0

प्रदीप श्रीवास्तव की सात बेहतरीन कहानियाँ

दोनों चित्रकार माँ-बेटी बरसों-बरस से मेरी ज़िन्दगी में कई मोड़ पर अहम रोल अदा करती आ रही हैं। वो मुझे सेलिब्रेटी बनाने की कोशिश बहुत बरसों से करती आ रही हैं। उन्हीं की सलाह है कि मैं परिवार के बारे में लिख डालूँ। यह और उन माँ-बेटी द्वारा बनाई गई मेरी न्यूड पेन्टिंग्स लोगों के बीच तहलका मचा देंगी।

असल में उन दोनों ने मुझे बहुत पहले इस बात का बड़ी गहराई से अहसास कराया था कि मैं इस दुनिया में एक अजूबा हूँ। एक ऐसी अजूबा जो जिधर निकल जाये उस पर लोगों की नज़र पड़े और ठहरे बिना नहीं रह पायेगी। देखा जाये तो सच यही है कि मैं एक अजूबा प्राणी ही तो हूँ। इसमें कोई दो राय नहीं कि अजूबों पर दुनिया का ध्यान बड़ी जल्दी जाता है। नज़र उस पर ठहर ही जाती है। इसलिए मुझे आज भी यक़ीन है कि चित्रा आन्टी और मिनिषा की बात एक दिन वाक़ई सच होगी।

मेरी आप बीती तहलका मचा सकती है। लेखन की बारीक़ियों से अनजान मैं यही समझ पाई हूँ कि मेरे अब-तक के जीवन में जो घटा है सब लिख डालूँ। मैं जैसी अजूबा हूँ, मेरे साथ अब-तक जीवन में वैसा अजूबा ही तो घटता आ रहा है। मेरी इस जीवन-गाथा के मुख्य पात्र माँ-बाप के बाद चित्रा आन्टी, मिनिषा, डिम्पू, ननकई मौसी, सिन्हा आन्टी, उप्रेती एवं दयाल अंकल आदि होंगे।

माँ-बाप होते तो निश्चित ही डिम्पू को न शामिल करने देते। तब मैं उनको यही समझाती कि माँ ऐसा कैसे कर सकती हूँ? आख़िर अपने ड्राइवर देवेन्द्र को कैसे छोड़ सकती हूँ? वही देवेन्द्र, माँ जिसे तुम डिम्पू-डिम्पू कहती हो। मैं यह भी मानती हूँ कि डिम्पू व मेरे बीच जो हुआ आगे चलकर, उसे जानते ही माँ और पापा दोनों ही निश्चित ही मुझे मारते-पीटते घर से निकाल देते।

जिस डिम्पू को हम लोग कभी नौकर से ज़्यादा कोई तवज्जोह नहीं देते थे, वही डिम्पू उनका दामाद बन जाता यदि उसने मुझे धोखा नहीं दिया होता। और मैं उसे ग़ुस्से में दुत्कार न देती और फिर कभी शादी न करने का प्रण न करती। मैं पूरे यक़ीन के साथ कहती हूँ कि यह जानते ही माँ मुझे ठीक उसी तरह घर से धक्के देकर सड़क पर फेंक देती, जैसे उन्हें और पापा को उनके सास-ससुर ने निकाल दिया था। जबकि उन्होंने, पापा ने तो ऐसा कोई काम किया ही नहीं था।

मुझे अच्छी तरह याद है कि माँ मौक़ा मिलते ही बार-बार सास-ससुर द्वारा घर से निकाले जाने और मेरे जन्म की घटना बताती थीं। माँ की याददाश्त बड़ी अच्छी थी। माँ हर बार एक सी ही बात बताती थीं। कभी उसमें कोई परिवर्तन नहीं रहता था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book