उपन्यास >> बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाब बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाबप्रदीप श्रीवास्तव
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प्रदीप जी का नवीन उपन्यास
अब्बू उसी दुकान से बने हुए कपड़े थोक में ले जाते थे। वहीं अम्मी अब्बू की मुलाकात हुई, फिर डेढ़ साल बाद ही निकाह। अब्बू अम्मी के ही मकान में आकर साथ रहने लगे। मकान से किराएदार निकाल दिए गए। लेकिन पैसों की किल्लत हुई, तो कुछ दिन बाद फिर आधा मकान किराए पर दे दिया गया। फिर देखते-देखते अम्मी ने हम पांच भाई-बहनों को जन्म दिया। चौथी संतान के कुछ महीने बाद अम्मी को पता चला कि अब्बू तो पहले ही से शादीशुदा हैं, और दो बच्चे भी हैं जो अच्छे-खासे बड़े हो चुके हैं।
अम्मी ने यह पता चलते ही कोहराम खड़ा कर दिया। लेकिन तब वह पांच छोटे-छोटे बच्चों के साथ अब्बू की ज्यादतियों के सामने कमजोर पड़ गईं। अब्बू के झांसे में आकर वह अपना जमा-जमाया काम-धंधा पहले ही छोड़ चुकी थीं। उन्होंने अब्बू से सारे रिश्ते-नाते खत्म कर घर छोड़ने के लिए कहा। 'खुला' देने की भी धमकी दी। लेकिन अब्बू टस से मस ना हुए, जमे रहे मकान में। अम्मी, बच्चों को बस जीने भर का खाना-पीना देते थे। लाज ढकने भर को कपड़े। अम्मी के लिए अपने वालिद को खोने के बाद यह सबसे बड़ा सदमा था, जिसने उन्हें बीमार बना दिया।
उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। लीवर की गंभीर समस्या से पीड़ित हो गईं। फिर उनका जीवन पूरी तरह अब्बू की दया पर निर्भर हो गया। वह कुछ भी ज्यादती करते रहते लेकिन अम्मी उफ तक नहीं कर पाती थीं। अब्बू ने उनको वर्षों तक खूब प्रताड़ित किया। बीमारी की हालत में भी उन पर हाथ उठाते रहते थे, कि वह मकान अब्बू के नाम लिख दें। लेकिन अम्मी लाख मार खातीं, मगर जवाब हर बार एक ही देतीं, कि जो तलाक आप बार-बार मांगने पर भी नहीं दे रहे हैं, मकान अपने नाम लिखवाते ही मुझे तलाक देकर बच्चों सहित सड़क पर मारकर फेंक देंगें। हमें सड़कों पर भीख मांगने के लिए छोड़ देंगे। हमें अपनी देह तक बेचने को मजबूर कर देंगे।
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