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बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाब

प्रदीप श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16913
आईएसबीएन :9781613017227

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प्रदीप जी का नवीन उपन्यास

देखा तो फिर देखती ही रह गई। पूरा परिवार, पूरे सुकून से गहरी नींद में सो रहा था। बच्चा दीवार की तरफ था। उसके बाद बीच में उसकी मां ज़ाहिदा और फिर उसका वालिद रियाज़। मैं एकटक देखती रही। मन ही मन कहा ज़ाहिदा तू कितनी खूबसूरत मुकद्दर वाली है। मुझ से पांच-छः साल छोटी ही होगी, और ऐसा कौन सा सुख है जो तेरी झोली में नहीं है। मेरी नजर बड़ी देर तक ज़ाहिदा के शरीर पर ऊपर से नीचे तक, बार-बार सफर करती रही। बगल में ही रियाज़ पर मेरी नजर बस एक बार ही सफर कर पाई।

मैं ख्यालों में खोई रही कि, ज़ाहिदा मुझसे कहने भर को ही थोड़ी सी ज्यादा गोरी है। उसके अंगों से अपने अंगों का मिलान करती हुई मैं बैठ गई। मुझे लगा कि, जैसे वह दोनों भी सोते हुए अपने बिस्तर सहित मेरे कमरे में आ गए हैं। दोनों ही अब भी एकदम पहले ही की तरह लेटे हुए हैं। गर्मी से बचने के लिए अपने सारे कपड़े अब भी एक बक्से पर फेंके हुए हैं।

मन में आते ऐसे तमाम ख्यालों का ना जाने मुझ पर कैसा असर हुआ कि, मैंने भी अपने एक-एक करके सारे कपड़े निकाल फेंके, कमरे के दूसरे कोने में। मैं ज़ाहिदा से अपने अंग-अंग का मिलान करके, अपने तन की वह खामी मालूम करना चाहती थी, जिसके कारण मुझे उसके जैसा सुख नसीब नहीं था। मैंने रोशनी अपनी तरफ करके, शीशे में पहले अपने चेहरे का मिलान किया। अपनी आँखें, नाक, होंठ और अपनी घनी ज़ुल्फ़ों का भी। यह सब मुझे ज़ाहिदा से बीस नहीं पचीस लगीं। गर्दन, छातियों पर नजर डाली तो मैं देखती ही रह गई। बड़ी देर तक। एकटक। वह मुझे जाहिदा की छातियों से कई-कई गुना ज्यादा खूबसूरत नजर आ रही थीं।

ज़ाहिदा से ज़्यादा बड़े, ज़्यादा भूरे लट्टू एकदम तने हुए। पूरी छाती उससे भी कहीं ज़्यादा सख्त, मानो संमरमर की किसी खूबसूरत इमारत पर अगल-बगल दो खूबसूरत संगमरमरी गुम्बद हों। अपने संगमरमरी गुम्बदों को देख-देखकर मैं ना जाने कैसे-कैसे ख्वाब देखने लगी। हद तो यह कि मैं उन्हें छेड़ने भी लगी। इससे ज़्यादा यह कि मैं अजीब से खूबसूरत एहसास से गुजरने लगी। मेरे खुद के हाथ मुझे अपने ना लगकर ऐसे लगने जैसे कि रियाज़ के हाथ हैं। वह ज़ाहिदा के पास से उठकर मानो मेरे पास आकर बैठ गया है। एकदम मेरे पीछे और मुझे अपनी आगोश में समेटे हुए है। उसके हाथों की थिरकन के कारण मैं आहें भर रही हूँ। ज़ाहिदा से भी तेज़।

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