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बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाब

प्रदीप श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16913
आईएसबीएन :9781613017227

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प्रदीप जी का नवीन उपन्यास

कुछ देर बाद उधर से आहट आनी बंद हो गई। मेरा मन यह जानने को मचल रहा था कि अब उधर क्या हो रहा है। खुद को मैं ज्यादा देर रोक न पाई। दूसरी तरफ कमरे में फिर से झांकनें लगी। अब-तक बेटा मां की छाती पर ही दूध पीता-पीता सो गया था। दोनों अब भी खुसुर-फुसुर अंदाज में बातें कर रहे थे। जो काफी हद तक मैं सुन और जो समझ भी रही थी, उससे बदन में सनसनाहट महसूस कर रही थी।

अचानक मां ने बेटे को फिर दीवार की तरफ सुरक्षित लिटा दिया। मियाँ-बीवी एक दूसरे की बाहों की गिरफ्त में मोहब्बत भरी बातें, हरकतें करते रहे। दोनों के बीच इस बेइंतिहा मोहब्बत को देखकर मैं सोचने लगी कि, दोनों कितने खूबसूरत मुकद्दर वाले हैं। ज़ाहिदा कितनी खुशनसीब है कि, उसे इतना मोहब्बत करने वाला शौहर मिला है, और मुकद्दर यह भी देखो कि बेपनाह हुस्न भी उसे मिला है। एक बच्चे की मां हो गई है, लेकिन कैसी बला की खूबसूरत लग रही है। और मियाँ! वह भी उससे कहीं कम नहीं है। मेरी नजर ज़ाहिदा से कहीं ज्यादा उसके मियाँ रियाज़ पर ही ठहर रही थी।

उन दोनों को पता नहीं आसमानी या कि जिस्मानी जो भी गर्मी थी, वह इतनी ज्यादा थी कि वह अपने कपड़े नहीं पहन रहे थे। मेरी जिस्मानी गर्मी भी मुझे बेहद तकलीफ दे रही थी। उसके शौहर के कारण यह बेइंतिहा बढ़ती ही जा रही थी। मुझसे रहा नहीं गया। मैं वापस आकर अपनी जगह बैठ गई। अपनी उखड़ी-उखड़ी सांसों को संभालने की कोशिश करने लगी। पानी भी पी लिया जिससे कि, जल्दी से जल्दी दिल की धक-धक करती आवाज बंद हो। कहीं यह अम्मी और इस खुशनसीब जोड़े के कानों में न पड़ जाए। मैंने कुछ देर बाद जमीन की तरफ की गई लाइट को फिर सीधा किया कि, चलूं कपड़े पर अधूरा छूट गया डिज़ाइन पूरा करूं, नहीं तो सवेरे अम्मी को क्या जवाब दूंगी।

फ्रेम लगा कपड़ा, सुई धागा उठाया, लेकिन उँगलियाँ हरकत नहीं कर पा रही थीं। तन-मन खुशनसीब जोड़े रियाज़-ज़ाहिदा के पास से हट ही नहीं पा रहे थे। ज़ाहिदा की खुशनसीबी से अपने को तौलने लगी कि, इसमें मुझ में फ़र्क़ क्या है। इसका नसीब ऐसा और मेरा ऐसा क्यों है। बिल्कुल टूटे आईने सा। क्या कमी है मुझमें। मैंने महसूस किया कि, जैसे मेरे शरीर में अजीब सी थरथराहट बराबर बनी हुई है। उधर दूसरी तरफ कमरे से अब कोई आहट नहीं मिल रही थी। मेरी उत्सुकता फिर बढ़ी कि, अब उधर क्या हो रहा है?

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