उपन्यास >> बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाब बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाबप्रदीप श्रीवास्तव
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प्रदीप जी का नवीन उपन्यास
दिनभर और फिर रात को भी हम बहनों और अम्मी ने भी खाना नहीं खाया। चिकनकारी का काम बेमन से ही करते रहे, आखिर ऑर्डर पूरा करना था। वह लेट हो रहा था। रात काफी हो चुकी थी और हम काम में जुटे हुए थे। आपस में कोई बात भी नहीं कर रहा था। हम चारों के चेहरे ऐसे मातमी हुए जा रहे थे कि, मानो जैसे अभी-अभी किसी प्रिय को कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक करके आए हैं।
उस दिन हम बहनों ने दोनों मोबाइल पर ना तो कोई चैनल ऑन किया, ना ही कोई पिक्चर लगाई। मशीन की तरह अपना काम करते रहे। आधी रात होने वाली थी कि तभी एक मोबाइल की लाइट जलने-बुझने लगी, थरथराने लगा। नंबर पहचान कर हमने तुरंत कॉल रिसीव की। उधर से लड़के की आवाज सुनकर मैं अचंभे में पड़ गई, क्योंकि अब तो सब कुछ खत्म हो गया था। फिर क्यों कॉल की।
कॉल रिसीव करते ही उसने बड़े अदब से बात शुरू कर दी। मैंने तुरंत ही बहन को मोबाइल दे दिया। दोनों ही भाइयों ने बहनों से बात की। फिर यह सिलसिला रोज का हो गया। बहनों के चेहरे से उदासी रोज ब रोज कम होती जा रही थी। हमें बड़ी तसल्ली हो रही थी कि अब बुजुर्गों की बजाय जवान अपने रास्ते तलाशने में लगे हैं।
यह सब होते-होते महीना भर बीत रहा था और गर्मी दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी। जुम्मे का दिन था। हम अपने बिस्तर में ही दुबके हुए थे। आसमान में एक-दो तारे अब भी दिखाई दे रहे थे। चिड़ियों की चहचहाहट शुरू हो गई थी। घर के बाहर सड़क पर एक पुराने बड़े पीपल के पेड़ पर इन पक्षियों का बसेरा था।
अचानक अम्मी की तीखी तेज़ आवाज़ में पंछियों की चहचहाहट गुम हो गई। वह चीख रही थीं कि, 'यह दरवाजा रात भर से खुला है क्या? कौन उठा है? बोलती क्यों नहीं तुम सब।' मगर हम सांसें रोके पड़ी रहीं। अम्मी कमरे के पास आकर चीखीं तो मैंने कहा, 'बंद तो किया था। अप्पी उठी होंगी।'
'अरे उठी होंगी तो दरवाजा क्यों खुला है, कोई बाहर गया है क्या?' इतना कहते-कहते अम्मी हमारे बिस्तर के पास आकर खड़ी हो गईं। दोनों अप्पी के बिस्तर खाली थे। अम्मी फिर दहाड़ीं, 'अरे कहाँ गई दोनों, गुसलखाने में भी नहीं हैं।'
देखते-देखते पूरा घर छान मारा गया। लेकिन दोनों अप्पी नहीं मिलीं। 'कहाँ गईं, जमीन निगल गई या आसमान ले उड़ा। या अल्लाह अब तू ही बता कहाँ हैं दोनों...।' अम्मी माथा पीटते हुए जमीन पर बैठ गईं। अब्बू ने न आव देखा ना ताव हम दोनों ही बहनों को कई थप्पड़ रसीद करते हुए पूछा, 'तुम चारों एक ही कमरे में थीं, वो दोनों लापता हैं और तुम दोनों को खबर तक नहीं है। सच बताओ वरना खाल खींच डालूंगा तुम दोनों की।'
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