उपन्यास >> बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाब बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाबप्रदीप श्रीवास्तव
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प्रदीप जी का नवीन उपन्यास
हम दोनों ही छोटी बहनें मार खाती रहीं, लेकिन कुछ बोले नहीं, सिवाय इसके कि, 'हम नहीं जानते। हम तो साथ सोए थे। दोनों कब उठीं हमें नहीं पता।' चिमटे के कई निशान हमारे बदन पर उतर आए थे लेकिन हमारे जवाब नहीं बदले। बदल भी नहीं सकते थे, आखिर हम दोनों ने, दोनों अप्पियों से वादा किया था कि हमारे शरीर से पूरी की पूरी चमड़ी भी उधेड़ ली जायेगी, तब भी हम कुछ नहीं बोलेंगे।
दोपहर होते-होते अब्बू अपने भरसक हर उस जगह हो आए थे जहाँ भी उन्हें जरा भी शक था। पूरी कोशिश यह भी करते रहे कि मोहल्ले में किसी को खबर ना हो। अम्मी घर पर कभी इधर, तो कभी उधर बैठकर रोतीं। हम दोनों को, तो कभी उन दोनों को कोसतीं। उन्होंने अब्बू से पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने के लिए कहा, तो वह दांत पीसते हुए बोले, 'चुप कर, और तमाशा बनवाएगी। पहले तूने खूब बनवाया, अब तेरी कमीनी औलादें तमाशा बनवा रही हैं।' अब्बू पुरानी बातें लेकर झगड़े पर उतर आए। खूब तमाशा कर, हम दोनों को फिर मारपीट कर कहीं चले गए। हमें मार-मार कर वह अधमरा ही कर देते यदि अम्मी बीच में ना होतीं।
शाम को एक नया कोहराम मच गया। इसका अंदाजा हमें पहले से ही था। अब्बू ने शक के आधार पर लड़कों के बारे में पता किया। किसी के जरिए उन्हें सच मालूम हो गया कि दोनों अप्पी उन्हीं दोनों लड़कों के साथ दूर कहीं अपना आशियाना बनाने के लिए निकल गई हैं। दोनों लड़कों ने शहर छोड़ने के बाद अपने घर वालों को फोन करके बता दिया था। बाद में यह भी पता चला कि अपने घर वालों को यह भी हिदायत दे दी थी कि वह सब अपनी मर्जी से जा रहे हैं। सोच समझकर जा रहे हैं। यदि किसी को परेशान किया गया तो वह कोर्ट भी जा सकते हैं।
उन सबने अपने मोबाइल बंद कर दिए थे। हमसे भी कहा था कि मोबाइल मामला शांत होने तक नहीं खोलना। अपने नए आशियाने की तलाश में उन्हें मुंबई पहुँचना था तो वह वहाँ पहुँच गए। बहनों और अपने अपने टेलरिंग हुनर के सहारे उन्हें वहाँ अपनी दुनिया को सजाने संवारने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी।
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