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बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाब

प्रदीप श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16913
आईएसबीएन :9781613017227

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प्रदीप जी का नवीन उपन्यास

उनके आँसू देखकर मेरे मन में उनकी तकलीफ गहरे उतर गई। गुस्सा भी उतने ही गहरे उतरता जा रहा था। कोई रास्ता कैसे निकल सकता है मैं यह सोचने लगी। तीनों सो गईं, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। अगले दिन सुबह मेरी नींद तब खुली जब अम्मी की आवाज कानों में गूँजी, 'बेंज़ी उठेगी भी, कि सोती ही रहेगी घोड़े बेचकर।' सच में उस दिन बहुत देर हो गई थी। नौ बज गए थे। बाद में पता चला कि उस दिन बाकी बहनें भी देर से उठी थीं।

उस दिन अम्मी का मूड कुछ सही देख कर, दोपहर को मैंने उनसे बात उठाई। मैंने साफ-साफ कहा, 'अम्मी अब्बू का जो रवैया है उससे तो बहनों का निकाह होने से रहा। इतना अच्छा घर-परिवार भी उन्होंने ठुकरा दिया। तू ही फिर कदम बढ़ा तभी कुछ हो पायेगा।'

मैंने देखा कि अम्मी ने बड़ी गंभीरता से मेरी बात सुनी है, तो मैंने अपनी बात और आगे बढ़ाई। तब अम्मी बड़े गंभीर स्वर में बोलीं, 'कोशिश की तो थी जी-जान से। लेकिन इसने सब पर पानी फेर दिया। कहीं का नहीं छोड़ा हमें। हर तरफ कितनी बेइज्जती हुई, कितनी बदनामी हुई। अब और रिश्ता कहाँ से ढूंढ़ लें। इसके कर्मों के कारण लड़कों ने हमेशा के लिए मुंह फेर लिया है। कितनी बार बुलाया लेकिन कोई नहीं आया। अब तो मुझे पक्का यकीन हो गया है कि, इसके रहते तुम लोग बिना निकाह के ही रह जाओगी। इससे जान छुड़ाने की जितनी भी कोशिश की, यह उतना ही गले पड़ गया है।'

अम्मी की इस बात ने मुझे हिम्मत दी। मैंने सीधे-सीधे कहा, 'अम्मी अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है। लड़के वाले बड़े नेक हैं। अब भी चाहते हैं। तू अब्बू को अलग कर, खुद बात कर तो वह मान जाएंगे। तब चार लोगों को बुलाकर निकाह पढ़वा देना। हमें विश्वास है कि वह लोग नेक इंसान हैं, वह हमारी बात मान जायेंगे।'

मेरी बात पर अम्मी मुझे आश्चर्य से देखने लगीं। मैंने कोशिश जारी रखी। तीसरे नंबर वाली ने भी पूरा साथ दिया। दोनों बड़ी तटस्थ बनी रहीं। दो दिन की मेहनत के बाद मैंने सोचा कि अम्मी की बात कैसे कराऊं, दोनों मोबाइल का जिक्र तो किसी हालत में उनसे कर नहीं सकती थी। तो एक छोटा मोबाइल खरीदने के लिए तैयार कर लिया कि, मोबाइल लाकर उसी से बात करें।

लेकिन एक बार फिर हमारी उम्मीदों पर कहर टूट पड़ा। लड़कों के अब्बू मोबाइल पर ही कहर बनकर टूट पड़े। चीखने लगे। लानत-मलामत जितना भेज सकते थे, जितना जलील कर सकते थे, उतना करके फोन काट दिया। उनकी बातों से यह साफ़ जाहिर था कि उन्होंने लड़कों को धोखे में रखा, नहीं तो वो बात कराते ही नहीं। उनकी जाहिलियत भरी बातों से अम्मी को गहरा सदमा लगा। मुझे भी सदमा उनसे कम नहीं लगा था।

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