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बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाब

प्रदीप श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16913
आईएसबीएन :9781613017227

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प्रदीप जी का नवीन उपन्यास

उनके हिसाब से हम लड़कियाँ लड़कों की बराबरी कत्तई नहीं कर सकतीं। ऊपर वाले ने ही हमें दूसरे पायदान पर खड़ा करके भेजा है, तो वह कैसे लड़कियों को लड़कों के बराबर खड़ा कर दें। एक बार उन खातून ने उनसे इस बारे में थोड़ी बात कर ली, समझाने का प्रयास किया कि, 'बच्चों के अच्छे मुस्तक़बिल के लिए, उनको तालीम देना आवश्यक है। मजहब की किताबों में लिखी बातों का यह मतलब कत्तई नहीं है, कि बच्चियों को तालीम कत्तई ना दी जाए। यह किताबों में लिखी बातों को गलत ढंग से समझना है।'

उनकी यह बातें अब्बू को इतनी नागवार लगीं कि उन्होंने उनसे साफ कह दिया कि, 'आप हमारे बच्चों को गलत रास्ते पर भेज रही हैं। आज से आप पढ़ाना बंद कर दीजिए।' खातून ने खुशी-खुशी उनकी बातें मानते हुए कहा, 'अगर आप यह सोच रहे थे, कि मैं आपके पैसों के लिए इन बच्चियों को पढ़ा रही थी, तो आप बड़ी गलतफहमी में हैं। बच्चियों को पढ़ाना मैं अपना कर्तव्य मानती रही हूँ। मेरी नजर में बच्चे-बच्चियों में कोई भेद करना गुनाह है। पैसा कमाना मेरा मकसद होता तो मैं यहाँ आने के बजाय किसी अन्य स्कूल के बच्चों को ट्यूशन दे रही होती। आप जितना देते हैं उसका छः-सात गुना पैसा मिलता।'

खातून ने लगे हाथ कई और बातें कह दीं जो सीधे-सीधे अब्बू की जाहिलियत की तरफ संकेत कर रही थीं। इसका अहसास होते ही अब्बू को अपना आपा खोते देर नहीं लगी। उन्होंने छूटते ही खातून पर काफिर होने का आरोप लगाते हुए कह दिया, 'मेरे यहाँ काफिरों को आने की कोई जरूरत नहीं है।'

खातून भी गुस्सा हो कर चली गईं हमेशा के लिए। जाते-जाते इतना जरूर कह गईं, 'ऐसी सोच ही हमारे दुखों, हमारी जाहिलियत का मुख्य कारण है।' उस दिन और उसके बाद भी कई दिन तक घर का माहौल अब्बू की बातों से गर्म होता रहा। पढ़ाई से इस तरह दूर होना हम बच्चों को बहुत खला। लेकिन हम सभी के हाथ-पैर बंधे थे। जल्दी ही हमें छत पर भी जाने की मनाही हो गई। हम तभी जा सकते थे, जब साथ में अम्मी भी हों। घर के कामकाज निपटाने के अलावा हमारा सारा वक्त चिकनकारी में बीतने लगा।

अम्मी ने ही हम सारी बहनों को चिकनकारी का हुनर सिखाया था। मेरी तीनों बड़ी बहनों ने कम उमर में ही इतनी काबिलियत हासिल कर ली थी कि उनके काम की माँग बढ़ गई थी। थोक का धंधा करने वाला जो डिज़ाइन देता, वे उनके अलावा भी नई-नई डिजाइनें पेश करतीं। यह डिज़ाइन इतनी खूबसूरत होती थीं, कि ग्राहक हाथों-हाथ लेता। थोक वाले ने जल्दी ही अपनी डिज़ाइनें देना बंद कर दिया। यह कह दिया कि आप अपने हिसाब से डिज़ाइन बनाएं।

हम बहनों की काम की स्पीड माशाल्लाह बिजली से हाथ चलते थे। हमारे हुनर से धंधा खूब चल निकला। आमदनी कई गुना बढ़ गई। साथ ही उम्र भी हो चली तो अम्मी निकाह के लिए परेशान होने लगीं। लेकिन अब्बू के कानों में जूं नहीं रेंग रही थी।

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