नई पुस्तकें >> जो विरोधी थे उन दिनों जो विरोधी थे उन दिनोंराजकुमार कुम्भज
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राजकुमार कुम्भज की कविताएँ
अर्द्ध-रात्रि, मध्य-रात्रि और कुत्तों की भौंक
अर्द्ध-रात्रि, मध्य-रात्रि और कुत्तों की भौंक
कुत्तों की भौंक बेहद पसन्द है एक कवि महोदय को
कवि पालता है कुत्ते और शब्द
वे भौंकते हैं, तो खुश होता है कवि
वे चुप लगा जाते हैं, तो रोता है कवि
कवि का रोना, एक शब्द-सम्भव है
किन्तु भौंक बिना लोकतंत्र असम्भव है
कुत्तों को भरपूर भौंकने दीजिए,
लोकतंत्र को भरपूर होने दीजिए
अर्द्ध-रात्रि, मध्य-रात्रि और कुत्तों की भौंक
हा, हा, हा।
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