नई पुस्तकें >> देवव्रत देवव्रतत्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य
रुक गए नृपति कुछ समय वहाँ,
उस कन्या का परिचय पूछा,
उस की सखियाँ थीं बता रहीं,
यह है निषाद की कन्या प्रभु॥54॥
पता पूछ उस धीवर का,
नृप गए गेह में उसके थे,
इस तरह अकारण आने पर,
धीवर थोड़ा सकपका गया॥55॥
करके प्रणाम साष्टांग उन्हें,
आने का कारण वह पूछा,
'हे आर्य! किस लिए आए हैं,
क्या भूल हुई कुछ सेवक से?'56॥
बोले शान्तनु उस धीवर से,
यमुना तट पर मैं घूम रहा-
था, देखा अति सुन्दर कन्या,
खेलते हुए सखियों के संग॥57॥
कन्या का पता लगाने पर,
सखियों ने कहा आपकी है,
इसलिए यहाँ पर आ करके,
देखा चाहा उस कन्या को॥58॥
कन्या को बुला कहा धीवर,
'हे प्रभो! यही वह कन्या है,
कहते हैं इसको सत्यवती,
है नहीं अभी तक परिणीता'॥59॥
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