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इन्द्रधनुष

अजय प्रकाश

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16641
आईएसबीएन :978-1-61301-743-2

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कविता एवं ग़ज़ल



शिवोऽहम्

कर्ता तुम्हीं हो हे शिव ! मैं हूँ बस एक माध्यम।
शिवोऽहम् शिवोऽहम्।

हे शंकर, हे महादेव, हे त्रिपुरारि
भेजा धरा पर मुझे 'अमृतस्य पुत्र:' बनाकर,
पर धरा पर आकर अमृतत्व को भूला, भटका,
तृषा बढ़ती गयी, इच्छाओं के जाल में अटका।
मैं कर्त्ता हूँ के अहंकार में जीवन भर इतराता रहा,
माया नचाती रही और मैं खुश हो नाचता रहा।

जब गोधूली का अंधेरा बढ़‌ता गया,
तब सत्य का मुझे आभास होता गया।
हम तो कठपुतली हैं, कर्त्ता कोई और है,
यह जीवन तो बस यम का एक कौर है।
तन नश्वर है, सत्य है बस चिरंतन आत्मा,
जिसका अंश बन तन में समाई, वह है परमात्मा।
उससे ही जुड़ अब बची साँसों का लक्ष्य है,
जुड़ गये, तो माया छूटी, पाना बस मोक्ष है।

कर्त्ता तुम्हीं हो हे शिव ! मैं हूँ बस एक माध्यम !
शिवोऽहम् ! शिवोऽहम् ! शिवोऽहम् !




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