नई पुस्तकें >> इन्द्रधनुष इन्द्रधनुषअजय प्रकाश
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कविता एवं ग़ज़ल
हे गणपति
हे गणपति ! सुन ले मेरी पुकार !
पगला मन काहे घबराए, यदि कोई नहीं तेरे साथ
जिसका कोई नहीं, गजानन थामें उसका हाथ।
वो ही कर्ता, वो ही भर्ता
वो ही हैं पालनहार।
डोल रही जीवन की नैया
गणपति आओ बन पतवार।
यह दुनिया माया की नगरी
सिर लादे चाहत की गठरी।
सबसे लागे नीकी काया
गणपति दूर करो माया।
हे गणेश ! शरण तिहारी आया,
अब सुन ले मेरी पुकार।
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