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आँख का पानी

दीपाञ्जलि दुबे दीप

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16640
आईएसबीएन :978-1-61301-744-9

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दीप की ग़ज़लें

5. आँखों के आँसुओं को बहाकर ग़ज़ल कहो


आँखों के आँसुओं को बहाकर ग़ज़ल कहो
दिल में छुपे जो राज़ बताकर ग़ज़ल कहो

मंजिल की चाह में जो सफ़र कर दिया शुरू
क्यूँ रुक गए क़दम वो बढ़ा कर ग़ज़ल कहो

गर चोट कोई देके हुआ दूर आपसे
रिश्तों का बोझ दिल में दबाकर ग़ज़ल कहो

दुनिया में उनसे बढ़के हितैषी कोई नहीं
माँ बाप का भी क़र्ज अदा कर ग़ज़ल कहो

उसने नहीं सिखाया कि मज़हब को बांट दो
दीवार मज़हबी ये गिराकर ग़ज़ल कहो

मफ़हूम शायरी का अगर आशिकाना हो
महबूब की अदा को समाकर ग़ज़ल कहो

मानेंगे आपके सभी अशआर ख़ूब हैं
महफ़िल में सबके सामने आकर ग़ज़ल कहो

उल्फ़त हो किसी से तो करो कोशिशें तमाम
बस आरजू का 'दीप' जलाकर ग़ज़ल कहो

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