नई पुस्तकें >> आँख का पानी आँख का पानीदीपाञ्जलि दुबे दीप
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दीप की ग़ज़लें
3. काफ़िया मिला लेना शाइरी न समझा जाए
काफ़िया मिला लेना शाइरी न समझा जाए
गीत बेसुरा गाना नग़्मगी न समझा जाए
जो विदेशी आते हैं उनको यह बता हम दें
जामुनों को खाकर है रस भरी न समझा जाए
दर्द है मुहब्बत में जान भी ये ले लेती
यह मेरी इबादत है बेबसी न समझा जाए
आँसुओं की जल धारा बह रही है आँखों से
बारिशों के पानी को मौसमी न समझा जाए
लिख रही हूँ दिल से मैं रोज ही ग़ज़ल कहती
शेर जो कहा मैंने आखिरी न समझा जाए
दुश्मनों के खेमे में जा रहा सुलह करने
सन्धि करने को मेरी बुजदिली न समझा जाए
'दीप' हम जला देंगे रौशनी भी कर देंगे
रोशनी जो कम हो तो तीरगी न समझा जाए
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