नई पुस्तकें >> मैं था, चारदीवारें थीं मैं था, चारदीवारें थींराजकुमार कुम्भज
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राजकुमार कुम्भज की 110 नई कवितायें
मैं खुरचता हूँ अंधेरा
- दीवार पर बैठी है छिपकली
- दीवार पर चुप बैठी छिपकली डराती है
- वह कुछ हरक़त करे, तो कुछ समझूँ मैं
- उसकी चुप में, उसका षडयंत्र, उसका अंधेरा है
- जबकि मेरे आसपास है मेरा लोकतंत्र
- मुझे उसके षड़यंत्र से बचाना है उजास
- और अपना लोकतंत्र
- मैं धीरे-धीरे खुरचता हूँ अंधेरा
- मेरे साथ है ज़माने भर का लोकतंत्र
- छिपकली और दीवार विरुद्ध ।
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