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मैं था, चारदीवारें थीं

राजकुमार कुम्भज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16638
आईएसबीएन :978-1-61301-740-1

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राजकुमार कुम्भज की 110 नई कवितायें

मैं खुरचता हूँ अंधेरा

 

दीवार पर बैठी है छिपकली
दीवार पर चुप बैठी छिपकली डराती है
वह कुछ हरक़त करे, तो कुछ समझूँ मैं
उसकी चुप में, उसका षडयंत्र, उसका अंधेरा है
जबकि मेरे आसपास है मेरा लोकतंत्र
मुझे उसके षड़यंत्र से बचाना है उजास
और अपना लोकतंत्र
मैं धीरे-धीरे खुरचता हूँ अंधेरा
मेरे साथ है ज़माने भर का लोकतंत्र
छिपकली और दीवार विरुद्ध ।

 

 

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