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मैं था, चारदीवारें थीं

राजकुमार कुम्भज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16638
आईएसबीएन :978-1-61301-740-1

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राजकुमार कुम्भज की 110 नई कवितायें

आख़िर वे कौन थे?

 

आख़िर वे कौन थे
जो अभी-अभी यहाँ से दौड़े थे तनकर
और हाँफते हुए गिर पड़े थे साधारणत: ?
चिकनाई से बड़ा चमत्कार नहीं कोई दूसरा
फिर दूसरा, तीसरा, चौथा ही क्यों नहीं
क्यों नहीं रहा हो अपनी उत्तेजना में कठिन
कुछ कम-कम दिखाई देता वह आदमी
जो बचता है और बचाता है, ख़ुद से ख़ुद को
यहाँ-वहाँ भटक रही मनुष्यता बचाने से पहले
पहले कविता या कवच नहीं,
नदी नहीं, वृक्ष नहीं, आकाश-पृथ्वी नहीं
पहाड़ या समुद्र ही नहीं, थोड़ा साहस सोचो
सोचो तो फ़ुरसत सोचो, थोड़ा सच सोचो
और एक-दूसरे के भीतर पैदा हो रही
धूल, राख, मिट्टी के ख़िलाफ़ सोचो
सोचो, सोचो ज़रा जल्दी सोचो
जो अभी-अभी यहाँ से दौड़े थे तनकर
आख़िर वे कौन थे?

 

 

 

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