नई पुस्तकें >> मैं था, चारदीवारें थीं मैं था, चारदीवारें थींराजकुमार कुम्भज
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राजकुमार कुम्भज की 110 नई कवितायें
आख़िर वे कौन थे?
- आख़िर वे कौन थे
- जो अभी-अभी यहाँ से दौड़े थे तनकर
- और हाँफते हुए गिर पड़े थे साधारणत: ?
- चिकनाई से बड़ा चमत्कार नहीं कोई दूसरा
- फिर दूसरा, तीसरा, चौथा ही क्यों नहीं
- क्यों नहीं रहा हो अपनी उत्तेजना में कठिन
- कुछ कम-कम दिखाई देता वह आदमी
- जो बचता है और बचाता है, ख़ुद से ख़ुद को
- यहाँ-वहाँ भटक रही मनुष्यता बचाने से पहले
- पहले कविता या कवच नहीं,
- नदी नहीं, वृक्ष नहीं, आकाश-पृथ्वी नहीं
- पहाड़ या समुद्र ही नहीं, थोड़ा साहस सोचो
- सोचो तो फ़ुरसत सोचो, थोड़ा सच सोचो
- और एक-दूसरे के भीतर पैदा हो रही
- धूल, राख, मिट्टी के ख़िलाफ़ सोचो
- सोचो, सोचो ज़रा जल्दी सोचो
- जो अभी-अभी यहाँ से दौड़े थे तनकर
- आख़िर वे कौन थे?
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