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मैं था, चारदीवारें थीं

राजकुमार कुम्भज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16638
आईएसबीएन :978-1-61301-740-1

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राजकुमार कुम्भज की 110 नई कवितायें

क्या कुछ सोचते हुए ?

 

क्या कुछ सोचते हुए
कितना कुछ दूर निकल जाता हूँ मैं
कल तक जिस घर के आँगन में
तुलसी का एक पौधा लगा था
जो बच्चों जैसा ही सगा था
आज खिड़की से झाँकता हूँ जब वहीं
तो पाता हूँ कुछ और कुछ और
कि वह नहीं, मैं नहीं, घर नहीं, आँगन नहीं
टेलीविज़न पर चल रही कोई फ़िल्म है एक
जिसमें कपड़े बदल रही है तुलसी
और हँस रही हैं टेलीफ़ोन में फँसी आवाजें
क्या कुछ सोचते हुए?

 

 

 

 

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