कविता संग्रह >> वाह रे पवनपूत वाह रे पवनपूतअसविन्द द्विवेदी
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पवनपुत्र हनुमान जी पर अवधी खण्ड काव्य
शुभकामना
श्री असविन्द द्विवेदी के 'वाह रे पवनपूत' खण्ड काव्य का अवलोकन करने का सुयोग प्राप्त हुआ। लोकभाषा संस्कृति के उन्नायक, अवधी के सशक्त रचनाकार असविन्द द्विवेदी जी को पाकर अमेठी, सुल्तानपुर ही नहीं अपितु सम्पूर्ण हिन्दी जगत गौरवान्वित हुआ है। इनका जन्म ग्राम अफोइया, जनपद सुल्तानपुर में हुआ। माता विपता देवी की वह कोख धन्य है, जिसने द्विवेदी जी जैसे सरल, मृदु-भाषी रचनाकार को जन्म दिया।
उक्त अवधी काव्य में लक्ष्मण की मूर्छा, भरत का स्नेह एवं हनुमान की भक्ति भावना, श्रीराम का रुदन आदि का वर्णन कवि ने जिस चिन्तन के साथ अपने शब्दों में किया है वह अन्यत्र देखने को नहीं मिलता है। श्री द्विवेदी जी ने अवधी के अनेक रचनाओं के द्वारा अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कविता के सन्दर्भ में लिखा है कि -
कीरति भनिति भूति, भल सोई।
सुरसरि सम सबकर हित होई।।
यह उक्ति द्विवेदी जी की रचनाओं के सन्दर्भ में सहज ही चरितार्थ होती है। साम्प्रदायिक सौहार्द, भाई-चारा, राष्ट्रीय एकता के साथ ही कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से सामान्य जन-मानस की पीड़ा का सफल चित्रण किया है।
श्री असविन्द द्विवेदी के काव्य ‘वाह रे पवनपूत' के प्रति अपनी हार्दिक शुभकामना व्यक्त करता हूँ।
- जुमई खाँ 'आज़ाद'
ग्राम व पोस्ट - गोबरी, प्रतापगढ़
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