कविता संग्रह >> वाह रे पवनपूत वाह रे पवनपूतअसविन्द द्विवेदी
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पवनपुत्र हनुमान जी पर अवधी खण्ड काव्य
सुभाशंसा
श्री असविन्द द्विवेदी अवधी के बहुप्रशंसित उदीयमान कवि हैं। सरल सुबोध एवं हृद्य होने के नाते इनकी रचनायें पाठक एवं श्रोता को सदैव भावविभोर करती है। इनकी विशेष अन्तर्दृष्टि कल्पना प्रवणता एवं अभिनव प्रयोग शीलता निश्चयन प्रशंस्य है। इनमें स्वाध्याय एवं लोकानुभव का मणिकांचन योग है। अवधी लोक जीवन से सघन सम्पत्ति के नाते यहाँ के प्रचलित मुहावरे एवं ठेठ अवधी के सारे शब्द इनकी रचनाओं में सहज उपलब्ध होते हैं। इनका छन्द विधान उत्तम है और भाषा प्रवाह पूर्ण है। इनकी व्यंजना शक्ति रस एवं अलंकार योजना भी यथा स्थान सराहनीय है। वर्णनशैली में यत्रकुत्र किंचित शिथिलता हो सकती है। किन्तु अपने कथ्य के नाते यह घृतमोदक की भांति सर्वतो ग्राह्य है।
कवि का दृढ़ विश्वास है कि जिस पर वाग्देवी की जितनी अधिक कृपा होती है, वह उतना ही श्रेष्ठ कवि होता है। साधुशील परम वैष्णव श्री असविन्द विराट सत्ता के प्रति सदैव नम्र एवं श्रद्धावान हैं। साहित्य जगत में अपरिमित रामकथा काव्य लिखे गये और आज भी लिखे जा रहे हैं। “आपनि आपनि भाखा लेई दई करि नाव' जब-तक धरती पर भावुक आस्थावान मानस है तब-तक ये प्रासंगिक रहेंगे, यही मानकर स्वान्तःसुखाय द्विवेदी जी ने 'वाह रे पवनपूत' की रचना की है। आशा है कि सुकृति कवि की यह कृति आधुनिक अवधी रामकाव्य परम्परा की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी। अपने कवि जीवन में असविन्द जी उत्तरोत्तर महत्तम ऊंचाइयों का स्पर्श करें, यशस्वी तेजस्वी बनें। उन्हें अनन्त प्रभु की अनन्त कृपा-करुणा मिले यही हमारी हार्दिक मंगलाशा है एवं आत्मिक आशीर्वाद है।
सद्भावी
विजय दशमी, सम्वत् 2055 वि०
- डॉ० माधव प्रसाद पाण्डेय
रीडर एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग
रणवीर रणंजय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
अमेठी, सुल्तानपुर
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