कविता संग्रह >> वाह रे पवनपूत वाह रे पवनपूतअसविन्द द्विवेदी
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पवनपुत्र हनुमान जी पर अवधी खण्ड काव्य
मंगलाशीष
युवा कवि श्री असविन्द द्विवेदी का अवधी काव्य ‘वाह रे पवनपूत' को में पूरा एक ही बैठक में पढ़ गया। असविन्द जी अवध क्षेत्र के एक उभरते हुए साहित्यकार हैं जिनकी उपस्थिति मंचों के लिए अपरिहार्य मानी जाती है। असविन्द जी आकाशवाणी के कवि न होकर जनजीवन को सशक्त अभिव्यक्ति देने वाले एक समर्थ रचनाकार हैं। ग्राम्य जीवन को पूरी तरह आत्मसात कर उसे अपने शब्द-चित्रों में संजोने का दुर्लभ कौशल श्री असविन्द द्विवेदी में विद्यमान है।
प्रस्तुत काव्य में लक्ष्मण की मूर्छा से लेकर उनके स्वस्थ होने तक के वृतान्त को बड़े मार्मिक ढंग से चित्रित किया गया है। काव्य की भाषा सरल
और सुबोध है। छन्द में विविधता है किन्तु उनका अनुक्रम सुनियोजित न होते हुए भी सुनियोजित एवं प्रभावोत्पादक है। भाषा और भाव की दृष्टि से यह एक अच्छा प्रयास है। श्री असविन्द के इस प्रयास से यह आशा जगती है कि वह भविष्य में अवधी क्षेत्र के शीर्षस्थ रचनाकारों में अपने को स्थापित कर सकते
युवा रचनाकार के प्रति मेरी कोटिशः मंगलकामनाएँ।
9.7.1998
- आद्या प्रसाद उन्मत
स्टेशन रोड, प्रतापगढ़
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