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आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश

महाकाल का सन्देश

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16271
आईएसबीएन :000000000

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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya

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केवल विचार मात्र ही मानव चरित्र के प्रकाशक प्रतीक नहीं होते। मनुष्य काचरित्र विचार और आचार दोनों से मिलकर बनता है। संसार में बहुत-से ऐसे लोग पाये जा सकते हैं, जिनके विचार बड़े ही उदात्त, महान् और आदर्शपूर्ण होतेहैं; किन्तु उनकी क्रियाएँ उनके अनुरूप नहीं होतीं। विचार पवित्र हों और कर्म अपावन, तो वह सच्चरित्रता नहीं हुई। इसी प्रकार बहुत-से लोग ऊपर सेबड़े ही सत्यवादी, आदर्शवादी और धर्म-कर्म वाले दीखते हैं, किन्तु उनके भीतर कलुषपूर्ण विचारधारा बहती रहती है। ऐसे व्यक्ति भी सच्चे चरित्रवाले नहीं माने जा सकते। सच्चा चरित्रवान् वही माना जाएगा और वास्तव में वही होता भी है, जो विचार और आचार दोनों को समान रूप से उच्च और पुनीतरखकर चलता है।

(अखण्ड ज्योति-१९६९, मई-२२)

 

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आपके पास जो भी घटना आए, परिस्थिति आए, व्यक्ति या विचार आए, प्रत्येक के ऊपरकसौटी लगाइए और देखिए कि इसमें क्या उचित है और क्या अनुचित है? कौन नाराज होता है और कौन खुश होता है, यह देखना आप बंद कीजिए। अगर आपने यह विचारकरना शुरू कर दिया कि हमारे हितैषी किस बात में प्रसन्न होंगे, तो फिर आप कोई सही काम नहीं कर सकेंगे। हमको भगवान् की प्रसन्नता की जरूरत है।

(५ अप्रैल १९७६, संदेश)

 

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जीवन प्रगति में मनुष्य का अहंकार बहुत बड़ा बाधक है। इसके वशीभूत होकर चलनेवाला मनुष्य प्रायः पतन की ओर ही जाता है। श्रेय पथ की यात्रा उसके लिए दुरूह एवं दुर्गम हो जाती है। अहंकार से भेद बुद्धि उत्पन्न होती है, जोमनुष्य को मनुष्य से ही दूर नहीं कर देती, अपितु अपने मूल स्रोत परमात्मा से भी भिन्न कर देती है। परमात्मा से भिन्न होते ही मनुष्य में पापप्रवृत्तियाँ प्रबल हो उठती हैं। वह न करने योग्य कार्य करने लगता है। अहंकार के दोष से मति विपरीत हो जाती है और मनुष्य को गलत कार्यों में हीसही का भान होने लगता है।

(अखण्ड ज्योति-१९६९, जून-५६)

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