आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश महाकाल का सन्देशश्रीराम शर्मा आचार्य
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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya
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मानव जीवन की सार्थकता के लिए विचार पवित्रता अनिवार्य है। केवल मात्र ज्ञान, भक्ति और पूजा से मनुष्य का विकास एवं उत्थान नहीं हो सकता। पूजा, भक्ति और ज्ञान की उच्चता व श्रेष्ठता का व्यावहारिक रूप से प्रमाण देना पड़ता है। जिसके विचार गंदे रहते हैं, उससे सभी घृणा करते हैं। शरीर गंदा रहे तो स्वस्थ रहना जिस प्रकार कठिन हो जाता है, उसी प्रकार मानसिक पवित्रता के अभाव में सज्जनता, प्रेम और सद्व्यवहार के भाव नहीं उठ सकते।
(अखण्ड ज्योति-१९६४, अगस्त)
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आत्म-विश्वास का अर्थ है-अपनी परिस्थितियों और समस्याओं का हल अपने आप में ढूंढना। आपक्यों दूसरे लोगों से सहायता की याचना करते हैं। उनके पास भी तो वही उपकरण हैं, जो परमात्मा ने आपको भी दिये हैं। क्यों नहीं अपने हाथ-पाँव चलाते। अपनी बुद्धि का उपयोग करते। बाहरी मनुष्य आपको सहायता देकर ऊँचे उठा नहीं सकता। इसके लिए आपको अपनी ही शक्तियों का सहारा पकड़ना पड़ेगा। प्रत्येकदशा में आत्म-विश्वास जाग्रत् करना पड़ेगा।
(अखण्ड ज्योति-१९६४, नवम्बर-१७)
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ईमानदारी और प्रामाणिकता ही किसी व्यक्ति का वजन बढ़ाती है। बेईमाने, लफंगे, झूठे,ठग और चालाक व्यक्ति अपनी इज्जत खो बैठते हैं और फिर उनकी साधारण बातों पर भी कोई भरोसा नहीं करता। लोग यह भारी भूल करते हैं कि अपने दोष-दुर्गुणोंके छिपे रहने की बात सोचते रहते हैं। यह सर्वथा असंभव है। पारा पचता नहीं। कोई खा ले तो शरीर में से फूट निकलता है। दुष्प्रवृत्तियाँ औरदुर्भावनाएँ, पाप और कुकर्म, निकृष्टता और दुष्टता के जो भी तत्त्व अपने भीतर होंगे, उनके छिपे रहने की कोई संभावना नहीं है। पाप छत पर चढ़करचिल्लाते हैं-यह उक्ति सोलहों आने सच है। मनुष्य की दुष्प्रवृत्तियाँ कोई प्रतिक्रिया उत्पन्न न करें, यह संभव नहीं शाश्वत सत्य को झुठलाने काप्रयास न करना ही श्रेयस्कर है।
(वाङ्मय-६६, पृ० १.२८)
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