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आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश

महाकाल का सन्देश

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16271
आईएसबीएन :000000000

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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya

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हमें जिनसे लड़ना है, उन अज्ञान, अनाचार और अभाव के असुरों का छद्मवेश बहुत हीविकराल है। वे न तो दीख पड़ते हैं और न सामने आते हैं। उनकी सत्ता भगवान् की तरह व्यापक हो रही है। अज्ञान-ज्ञान की आड़ में छिप कर बैठा है। अनाचारको पकड़ना कठिन पड़ रहा है, अभावों का जो कारण समझा जाता है, वस्तुत: उससे भिन्न ही होता है। ऐसी दशा में हमारी लड़ाई व्यक्तियों से नहीं, अनाचार सेहोगी। रोगियों को नहीं, हम रोगों को मारेंगे। पत्ते तोड़ते फिरने की अपेक्षा जड़ पर कुठाराघात करेंगे। भावी महाभारत अपने अलग ही युद्ध कौशल सेलड़ा जाएगा। निहित स्वार्थों से इतने अधिक लोग ओतप्रोत हो रहे हैं, उन्होंने लोकप्रियता की रेशमी चादर ऐसी अच्छी तरह लपेट रखी है कि उन परव्यक्तिगत रूप से आक्रमण करते न बन पड़ेगा। हम प्रवाहों से जूझेंगे, धाराओं को मोड़ेंगे और अनाचार का विरोध करेंगे। उनके समर्थन में जो लोगहोंगे, वे सहज ही लपेट में आ जाएँगे और औंधे मुंह गिर कर मरेंगे।

(अखण्ड ज्योति-१९७४, जनवरी-५७)

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आज हर वर्ग में, हर व्यक्ति में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अनाचार कीजड़े अत्यन्त गहराई तक घुसती चली गई हैं। इनमें एक-एक को चुनना संभव नहीं, किसी का दोष सिद्ध करना भी कठिन है। ऐसी दशा में व्यक्तियों से नहीं,धाराओं से हम लड़ेंगे। हर दुष्प्रवृत्ति का भण्डाफोड़ करेंगे और वह ऐसा तीखा होगा कि सुनने वाले तिलमिला उठे और उनमें प्रवृत्त लोगों के लिएमुँह छिपाना कठिन हो जाए। जन आक्रोश ही इतने व्यापक भ्रष्टाचार से लड़ सकता है। हम उसी को उभारने में लगे हैं। समय ही बताएगा कि हमारा संघर्षकितना तीखा और कितना बाँका होगा। बौद्धिक क्रान्ति की, नैतिक क्रान्ति की, सामाजिक क्रान्ति की दावानल इतनी प्रचण्डता पूर्वक उभारी जाएगी कि उसकीलपटें आकाश चूमने लगें। अज्ञान और अनाचार का कूड़ा-करकट उसमें जलकर ही रहेगा।

(अखण्ड ज्योति-१९७४, जनवरी-५७)

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अब ठीक यही समय है कि प्राणवान्, प्रज्ञावान् अपना केंचुल बदल डालें। अंतराल में उत्कृष्ट उमंगें और क्रिया-कलापों का, आदतों का नये सिरे से ऐसा निर्धारण करें, जो गायत्रीपरिवार के लिए प्रेरणाप्रद बन सके। आदर्शों को महत्त्व दें। यह न सोचें कि तथाकथित सगे-संबंधी क्या परामर्श देते हैं?

प्रस्तुत समय हमसे संयम और अनुशासन अपनाये जाने की अपेक्षा करता है। प्रचलन तो ढलानकी ओर लुढ़कने का है। उत्कृष्टता की ऊँचाई तक उछलने के लिए शूरवीरों जैसा साहस दिखाना पड़ता है। इस प्रदर्शन को अभी टाल दिया गया तो संभव है, ऐसाअवसर फिर जीवन में आये ही नहीं।

(वाङ्मय-२८, पृ० २.१९)

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