आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश महाकाल का सन्देशश्रीराम शर्मा आचार्य
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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya
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नये युग की रचना के लिए अब ऐसे व्यक्तित्वों की ही आवश्यकता है, जो वाचालता औरप्रचारप्रसार से दूर रहकर अपने जीवनों को प्रखर एवं तेजस्वी बनाकर अनुकरणीय आदर्श उपस्थित करें। आदर्शों पर जिनकी निष्ठा नहीं है, ऐसे ओछेलोग न तो अपने को विकसित कर सकते हैं और न शान्तिपूर्ण सज्जनता की जिन्दगी ही जी सकते हैं, फिर इनसे युग निर्माण के उपयुक्त उत्कृष्ट चरित्र उत्पन्नकरने की आशा कैसे की जाए? आदर्श व्यक्तियों के बिना दिव्य समाज की भव्य रचना का स्वप्न साकार कैसे होगा? जरूरत उन लोगों की है, जो अपनी आस्था कीसच्चाई प्रमाणित करने के लिए बड़ी से बड़ी परीक्षा का उत्साहपूर्ण स्वागत करे।
(वाङ्मय-६६, पृ० २.७६)
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मनुष्य की श्रेष्ठता की कसौटी यह होनी चाहिए कि उसके द्वारा मानवीय उच्च मूल्योंका निर्वाह कितना हो सका, उनको कितना प्रोत्साहन दे सका। योग्यताएँ, विभूतियाँ तो साधन मात्र हैं। लाठी एवं चाकू स्वयं न तो प्रशंसनीय है, ननिन्दनीय। उनका प्रयोग पीड़ा पहुँचाने के लिए हुआ या प्राण रक्षा के लिए? इसी आधार पर उनकी भर्सना या प्रशंसा की जा सकती है। मनुष्य की विभूतियाँएवं योग्यताएँ भी ऐसे ही साधन हैं। उनका उपयोग कहाँ होता है, इसका पता उसके विचारों एवं कार्यों से लगता है। यदि वे सद् हैं, तो यह साधन भी सद्है, पर यदि वे असद् हैं, तो वह साधन भी असद् ही कहे जाएँगे। मनुष्यता का गौरव एवं सम्मान जड़ साधनों से नहीं, उसके प्राणरूप सद्विचारों एवं सद्प्रवृत्तियों से जोड़ा जाना चाहिए।
(वाङ्मय-६६, पृ० ५.१३)
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