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वापसी

गुलशन नंदा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16263
आईएसबीएन :0

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गुलशन नंदा का मार्मिक उपन्यास

''ओह...मैं भी कमाल का आदमी हूं।'' मेजर रशीद ने हल्के से ठहाके के साथ कहा-''तुमसे कोई मिलने आया और मैं भूल ही गया।'' यह कहते हुए मेजर रशीद ने जीप-गाड़ी की ओर मुंह करते हुए कैप्टन रणजीत को पुकारा।

एक अजनबी का नाम सुनकर पहले तो सलमा चौंकी और फिर जैसे ही रणजीत धीरे-धीरे सरकता हुआ अंधेरे से उजाले में आया कि उसके मुंह से चीख निकलते-निकलते रह गई। अपने पति के हमशक्ल को सामने खड़ा देखकर वह अचरजभरी निगाहों से कभी उस अजनबी को और कभी अपने पति को देखने लगी। असीम आश्चर्य से उसके चेहरे का रंग बदलने लगा था।

कुछ क्षण के लिए वह मूर्तिमान, स्थिर-सी खड़ी रह गई। रणजीत वे जैसे ही हाथ जोड़कर 'भाभी नमस्ते' कहा, वह एक जंगली बांस की तरह लहराई और 'उइ अल्लाह' कहते हुए अंदर की ओर भाग गई।

मेजर रशीद ने पत्नी की इस भोली-भाली अदा पर एक जोरदार ठहाका लगाया और रणजीत को साथ लिए ड्राइंग-रूम में आते हुए बोला-''क्यों दोस्त, मैं कहता था न कि तुम्हारी भाभी तुम्हें देखकर दंग रह जायेंगी।''

''उन्हें अब आप ज्यादा परेशान मत कीजिए। साफ-साफ बता दीजिए कि मैं कौन हूं।''

''डोंट वरी...तुम आराम से बैठो, मैं अभी जाकर उसे समझा देता हूं।''

मेजर रशीद रणजीत को सोफे पर बैठाकर सलमा के पास अंदर चला गया। रणजीत ने ध्यानपूर्वक चारों और दृष्टि घुमाकर कमरे की ओर देखा। छोटा-सा सुंदर ड्राइंग-रूम बड़े सलीके से सजाया गया था। वह मन-ही-मन सलमा के सलीके को सराहने लगा।

सलमा का दिल अभी तक धड़क रहा था। वह इस बात को सोचकर लाज से पसीना-पसीना हुए जा रही थी कि एक अजनबी के सामने अपने पति से लिपट गई थी। क्या सोचता होगा वह...।

इतने में अचानक पीछे से रशीद ने आकर उसकी पीठ पर हल्का-सा धप्प लगाते हुए कहा-''तुम क्यों भाग खड़ी हुईं?''

''और क्या करती। मुझे एक अजनबी के सामने बेपरदा कर दिया। कितनी बेशरमी की बात है।''

''तुम्हें कुदरत का अजीबोगरीब करिश्मा दिखाना चाहता था। हूबहू मेरी कापी मालूम होता है न।''

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