उपन्यास >> वापसी वापसीगुलशन नंदा
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गुलशन नंदा का मार्मिक उपन्यास
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रात का पहला पहर बीत चुका था...।
दिन के कोलाहल के बाद, वातावरण पर रात की निस्तब्धता छाती जा रही थी। कुछ घरों की रोशनियां बुझ चुकी थीं। कुछ की अभी जगमगा रही थीं। सड़क पर इक्का-दुक्का राहगीर आ-जा रहे थे। ब्लैक आउट समाप्त हो गया था। बहुत दिनों के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शहर ने अपनी बन्द आंखें खोली हैं। फिर भी सड़कों की बत्तियों पर अब भी स्याही पुती हुई थी, जिससे सड़कें कुछ सोई-सोई सी लग रही थीं।
सलमा घर के काम-काज से निबटकर, एकांत में बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी। उसे इस बात का खेद था कि उसके पत्र लिखने के बावजूद भी उसके पति मेजर रशीद अपनी शादी की सालगिरह के दिन घर नहीं आये। उनकी शादी की यह पहली सालगिरह थी। यही दिन उसके लिए भरपूर खुशियां लेकर आया था, लेकिन आज इसी दिन वह बिलकुल अकेली है।
अचानक बाहर जीप की आवाज़ सुनकर वह चौंक पड़ी। धड़कते दिल से लपककर उसने दरवाज़ा खोला। सामने मेजर रशीद की जीप गाड़ी खड़ी थी।
सलमा ने आगे बढ़ते हुए व्याकुलता और प्रसन्नता मिश्रित स्वर में कहा-''आप आ गये।''
''क्यों यक़ीन नहीं आ रहा है?'' मेजर रशीद ने मुस्कराकर उसकी ओर बढ़ते हुए कहा।
''यक़ीन करते हुए डरती हूं।''
''क्यों?''
''कहीं मेरी सौत फिर न बुला ले जाये। इस ज़ालिम ने तो आपको मुझसे बिलकुल ही छीन लिया।''
''अरे भई, अब तो जंग ख़त्म हो चुकी है, अब बेचारी को क्यों कोसती हो।'' मेजर रशीद ने मुस्कराते हुए कहा और फिर उसके पास जाकर धीरे से बोला-''क्या करूं, रात-दिन क़ैदियों के तबादले में लगा हुआ हूं। एक लमहे की भी फुरसत नहीं मिलती। अब आया भी हूं तो खाली हाथ। इस मुबारक-दिन पर तुम्हारे लिए कोई तोहफा भी नहीं ला सका।''
''आपसे बढ़कर मेरे लिए कौन-सा तोहफा हो सकता है। बस, आप आ गये, मुझे सबकुछ मिल गया।'' सलमा ने प्यार-भरी नज़रों से पति की ओर देखते हुए कहा और धीरे से सिमटकर उसकी बाहों में आ गई।
सलमा को यों अनभव हुआ, जैसे कुछ क्षण के लिए वह स्वर्ग में आ पहुंची हो। पति की बांहों की गरमी से वह पिघली जा रही थी। कुछ देर तक आंखें बन्द किये हुए विभोर-सी वह उसके सीने से लगी रही। अचानक वह उछलकर पति से अलग हो गई और आंखें फाड़-फाड़कर जीप की ओर देखने लगी। जीप में से किसी के हल्के-से खखारने की आवाज़ आई थी। फिर उसने कोई छाया सी हिलती देखी। उसने घबराकर पति से पूछा-''आपके साथ और कौन है?''
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