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उपन्यास >> वापसी

वापसी

गुलशन नंदा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16263
आईएसबीएन :0

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गुलशन नंदा का मार्मिक उपन्यास

''कापी...? मैं तो यह सोचकर कांप जाती हूं कि अगर वह अकेला घर में आ जाता तो मैं अंधेरे में...''

''हां-हां अंधेरे में क्या...?'' रशीद ने उसका चेहरा लाज से लाल होते देखकर मुरस्कराते हुए पूछा।

''कुछ नहीं।'' सलमा ने माथे पर बाल डाल लिए और झल्ला-कर बोली-''आते ही बता दिया होता तो आपका क्या बिगड़ जाता। आपने जानबूझकर उसके सामने मुझे शर्मिन्दा किया। कौन है यह?''

''भारत का एक जंगी क़ैदी...कैप्टन रणजीत।''

''यहां क्यों ले आये?''

''मेरा कोई भाई नहीं है न! मैंने उसे अपना भाई बना लिया है।''

''सचमुच आपका जोड़वां भाई मालूम होता है। लेकिन अगर भाग गया तो?''

''यह नामुमकिन है। दरअसल कुछ दूसरे क़ैदियों के साथ अपने अजीज़ों के नाम पैग़ाम देने के लिए इसे रेडियो-स्टेशन ले गया था। वापसी में इसे मैं साथ लेते आया। कल क़ैदियों का जो जत्था हिंदुस्तान जा रहा है, यह भी उसी के साथ चला जायेगा।''

''किसी बड़े अफसर ने उसे यहां देख लिया तो?''

''यह मेरी जिम्मेदारी है...और देखो आज की रात यह हमारा मेहमान है। इसकी खातिरदारी में कोई कमी न रहने पाये। ताकि जब यह हिंदुस्तान लौटे तो हमारे वतन की खुशबू भी अपने साथ ले जाये।''

''लेकिन नौकर तो जा चुका है। खाना कौन खिलायेगा इसे?''

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