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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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आधुनिक भारत के निर्माता

माण्डले में 6 वर्ष की सजा भुगतने के बाद तिलक जब भारत लौटे तो उनकी अवस्था 58 वर्ष की थी। उनके तीन कारावासों में इसकी अवधि सबसे लम्बी थी और एकान्तवास का उन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा था। उनकी आत्मा झुकी नहीं थी, किन्तु वृद्धावस्था से उनका शरीर क्षीण हो चला था। पूना लौटने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने एक मित्र से कहा था-''अब मेरे जीने के दिन गिने-चुने हैं। अधिक से अधिक अब मैं एक दो वर्ष जीवित रह सकूंगा।''

फिर भी, वह अपनी पहले की आदत के अनुसार ही काम में पूरी लगन और उत्साह से पुनः जुट गए। उन्होंने अपने सामने तीन लक्ष्य रखे-(1) कांग्रेस में एकता लाना, (2) राष्ट्रवादी दल (नेशनलिस्ट पार्टी) को पुनर्गठित करना और (3) होम रूल लीग की स्थापना करना। ये तीनों लक्ष्य परस्पर सम्बद्ध थे और सभी का उद्देश्य देश को स्वराज की ओर ले जाना था। इनमें से कांग्रेस में एकता लाने के लक्ष्य को स्वभावतः ही सर्वोच्च प्राथमिकता मिली। सूरत में यद्यपि उनके विरोधियो ने उन पर कांग्रेस में फूट डालने का अनुचित आरोप लगाया था, फिर भी उनसे अधिक कोई भी कांग्रेस की एकता में विश्वास नहीं रखता था। यह सच है कि वह कांग्रेस को एक जीवित प्रगतिशील संस्था बनाना चाहते थे और उन्हें नरम दलवालों की ढुलमुल नीति में कोई विश्वास न था, फिर भी वह उनके साथ समझौता करने को उत्सुक थे।

इस दिशा में उनके प्रयास को नरम दलवाले सन्देह की दृष्टि से देखते थे। लेकिन आश्चर्य तो इस बात पर है कि तिलक के कई कट्टर समर्थक भी उनके इन प्रयासों को सही-सही नहीं समझ सके थे। कभी-कभी उन्हें सन्देह होता था कि कहीं माण्डले की यातनाओं ने तिलक की हिम्मत पस्त तो नहीं कर दी है और उन्हें नरम विचारों का तो नहीं बना दिया है। परिणामस्वरूप बेलगांव प्रान्तीय कांग्रेस (अप्रैल, 1916) में उन्हें अपने समर्थकों को समझौते के लाभ समझाने के लिए काफी तर्क-वितर्क करना पड़ा।

एकता में मुख्य बाधा थी उन संगठनों पर लगी रोक, जो उस समय कांग्रेस के प्रतिनिधियों का चुनाव करते थे। कोई भी राजनैतिक संगठन या सार्वजनिक संस्था तब तक मान्य नहीं हो सकती थी, जब तक कि वह कांग्रेस के विधान के प्रथम अनुच्छेद को स्वीकार नहीं कर लेती थी जिसके अन्तर्गत औपनिवेशिक स्वशासन-सम्बन्धी नरम दल का लक्ष्य निर्धारित था। फलतः कांग्रेस के प्रतिनिधियों का चुनाव करने का अधिकार खास तौर से नरम दल की संस्थाओं के ही हाथ में आ गया था और इस प्रकार राष्ट्रवादियों (नेशनलिस्टों) के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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