जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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आधुनिक भारत के निर्माता
कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में पूना का प्रतिनिधित्व करने का श्रेय तिलक के साथी श्री वा० शि० आप्टे और आगरकर को प्राप्त हुआ। तिलक कांग्रेस की कार्रवाइयों में सदा ही रुचि रखते थे और उन्होंने 'केसरी' के द्वारा परामर्श भी दिया था कि वह केवल राजनैतिक सुधारों पर ही ध्यान दे। यह बहुतों को ज्ञात न होगा कि कांग्रेस, जैसा कि उसके संस्थापक श्री ए० ओ० ह्यूम चाहते थे, समाज सुधार का साधन थी और बाद में वाइसराय लार्ड डफरिन ने परामर्श दिया था कि वह एक राजनैतिक संगठन के रूप में परिणत हो। कांग्रेस में आने के साथ ही तिलक ने विधान परिषदों के सुधार से सम्बन्धित प्रस्ताव में संशोधन रखा कि ''राजकीय इम्पीरियलिस्ट विधान मण्डलों के सदस्यों का निर्वाचन प्रादेशिक परिषदों के सदस्य करें।'' श्री गोखले ने इसका अनुमोदन किया किन्तु यह प्रस्ताव पारित न हो सका। इस अधिवेशन के दिनों में तिलक ने बम्बई से 'केसरी' दैनिक रूप मैं छाप कर पत्र-कारिता के इतिहास में नया कीर्तिमान स्थापित किया।
1889 के बाद तिलक ने कांग्रेस के हर एक अधिवेशन में भाग लिया। 1891 में नागपुर अधिवेशन में उन्हें आर्म्स एक्ट पर एक प्रस्ताव पेश करने का सम्मान प्राप्त हुआ। कांग्रेस के मंच से उनका यह पहला महत्वपूर्ण भाषण था और इस विषय की चर्चा बार बार अधिवेशन में हुई। इसलिए भाषण के कुछ उद्धरण यहां देना उचित होगा :
''अभी भी सरकार को सेना में भर्ती हाने के लिए लोग ढूंढ़ने में कठिनाई हो रही है। मेरा विश्वास है कि यदि वह अपनी नीति को नहीं बदलती तो उसकी कठिनाइयां बढ़ती जाएंगी। इसका मुख्य कारण है कि सरकार अपनी वर्तमान नीतियों द्वारा रण-प्रिय जातियों को नपुंसक बना रही है और इसलिए भी लोगों में ऐसी सरकार की सेवा करने का उत्साह कम हो रहा है जो हम सबों को अविश्वास और सन्देह की दृष्टि से देखती है। यह सरकार और भारत के लिए अमान्य होगा कि सेना में भर्ती होने की कठिनाइयों को दूर न किया जाए। हम ऐसी दशा नहीं आने दे सकते और यह प्रस्ताव इसी दिशा में प्रयत्न है।''
प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ और श्रोतागण तिलक के भाषण से बहुत प्रभावित हुए। वह भावी नेता के रूप में मान्य हो गए। 1893 के अधिवेशन में स्थायी भूमि-व्यवस्था की मांग का समर्थन करते हुए तिलक ने इस आरोप का खण्डन किया कि कांग्रेस का जन्म केवल शिक्षित जनता के ही हित के लिए हुआ था : ''हम शिक्षित वर्ग कान हीं बल्कि निम्न वर्ग के लोगों का हित चाहते हैं। मैं स्पष्ट कह देना चाहता हूं कि मैं जमींदारों के पक्ष में नहीं, रैयतों के पक्ष में हूं।''
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि कांग्रेस लोक-संगठन बने और जनता की सेवा करे। श्री ह्यूम भी, जिन्होंने प्रथम '50 सच्चे व्यक्तियों' से अपील की थी, इस ओर झुक रहे थे। 1892 की फरवरी में उन्होंने एक परिपत्र में कांग्रेसियों से कहा कि वह सरकार की कृपा की प्रतीक्षा न कर कठिनाइयों को दूर करने के लिए स्वयं आन्दोलन करें। 'केसरी' ने श्री ह्यूम का पूरा-पूरा समर्थन किया।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट