जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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आधुनिक भारत के निर्माता
अमृतसर से लौटने के बाद तिलक इस प्रस्ताव को कार्यान्वित करने के काम में जुट गए। जुन्नार और बेलगांव के जिला सम्मेलनों में और शोलापुर के प्रान्तीय सम्मेलन में, जहां सूरत अधिवेशन की तरह की गाली-गलौज और हुल्लड़बाजी देखने को मिली, उन्होंने देश को चुनाव लड़ने के लिए तैयार करने के उद्देश्य से जनमत तैयार किया। साथ ही अमृतसर कांग्रेस के प्रस्ताव का मतलब समझाने के लिए उन्होंने सिन्ध का भी दौरा किया।
तिलक सुधारों को कार्यान्वित करने की दिशा में जवाबी सहयोग के लिए देश को तैयार करने के काम में इसी तरह जुटे हुए थे कि इस बीच गांधीजी के विचार पूरी तरह बदल गए, हालांकि उन्होंने अमृतसर में बिना किसी शर्त के सरकार को सहयोग देने की राय जाहिर की थी। उनके विचारों में इस परिवर्तन का मुख्य कारण था टर्की से मित्र राष्ट्रों की हुई उस सन्धि की शर्तो का प्रकाशन, जिसके द्वारा ब्रिटिश सरकार ने खिलाफत का अन्त कर दिया था, हालांकि पहले उसने उसे बरकरार रखने का वचन दिया था। इससे मुसलमानों में भयंकर क्षोभ और क्रोध फैल गया। गांधीजी ने मुसलमानों की इस भावना का आदर करते हुए उनका साथ देने का फैसला किया और उनके सामने असहयोग का कार्यक्रम रखा। तब तक हंटर जांच कमेटी की रिपोर्ट भी प्रकाशित हो चुकी थी, जिसमें जलियांवाला बाग की नृशंस हत्याओं को ''समझ की भूल'' बताकर हत्यारे अफसरों को करीब-करीब अपराधमुक्त कर दिया गया था। इस रिपोर्ट से भी गांधीजी के वैचारिक परिवर्तन को बल मिला, क्योंकि अब वह गोरे शासकों से बहुत ही क्षुब्ध थे और इन बातों से वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि जो सरकार अपने वायदे को तोड़ सकती है, जैसा कि खिलाफत के मामले में हुआ है, और जो सरकार जलियांवाला बाग काण्ड के हत्यारों को माफ कर सकती है, उसे अब आगे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
अतः अप्रैल में अखिल भारतीय होम रूल लीग का अध्यक्ष पद संभालने के बाद गांधीजी ने एक बयान में इस बात को खुले तौर पर स्वीकार किया कि राष्ट्रीय पुनर्गठन की उनकी योजना में इन सुधारों को प्रथम नहीं, बल्कि दूसरा स्थान प्राप्त है। जब मित्र राष्ट्रों की ओर से टर्की के सामने पेश की गई शान्ति-संधि की शर्तें 14 मई, 1920 को प्रकाशित हुई, तब उन्होंने यह स्पष्ट घोषणा की कि 'इस शैतान सरकार के साथ किसी भी तरह का सहयोग करना पाप है।'' अतः 28 मई को केन्द्रीय खिलाफत कमेटी ने असहयोग के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इसके दो दिनों बाद बनारस में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई, जहां गांधीजी ने उसी तरह का प्रस्ताव स्वीकार करने की मांग की, किन्तु उनकी बातें सुनने के बाद कमेटी ने यह राय जाहिर की कि चूंकि इस तरह का प्रस्ताव अमृतसर में स्वीकृत सुधार सम्बन्धी प्रस्ताव के खिलाफ है, इसलिए उसे इस तरह का प्रस्ताव स्वीकार करने का अधिकार नहीं है। फलतः उसने इस प्रस्ताव को विचारार्थ आगे चलकर कलकत्ता में होनेवाले कांग्रेस के एक विशेष अधिवेशन को सुपुर्द कर दिया।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट