लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

आधुनिक भारत के निर्माता

जब तिलक मद्रास से अमृतसर के रास्ते में थे, तभी उन्हें यह खबर मिली कि पार्लियामेंट ने रिफार्म्स बिल (सुधार विधेयक) पास कर दिया है, सरकार ने सभी राजनीतिक अपराधियों को क्षमादान करके रिहा करने की घोषणा कर दी है और उसने भारतीय जनता से अपील की है कि वह इन नए सुधारों को लागू करने में उससे सहयोग करे। इससे तिलक को प्रसन्नता हुई और रास्ते में ही बीच के किसी स्टेशन से उन्होंने वाइसराय के नाम अपना प्रसिद्ध तार भेजा, जिसमें उस सरकारी घोषणा और राजनीतिक कैदियों की आम रिहाई के लिए ब्रिटिश सम्राट के प्रति होम रूल लीग और भारतीय जनता की ओर से कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए सरकार से जवाबी सहयोग करने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन 'जवाबी सहयोग' जैसे दो शब्दों से एक बवंडर उठ खड़ा हुआ और आलोचकों ने तिलक पर सुधारों को नाकाम करने की नीयत रखने का आरोप लगाया।

यद्यपि यह उक्ति क्षणिक ही थी, परन्तु तिलक ने सदा ही अपना सारा काम ''जवाबी सहयोग'' की भावना से ही किया था। दरअसल, वह एक यथार्थवादी राजनीतिज्ञ थे। अतः जीवन-भर उनका यही उद्देश्य रहा कि ''जो मिले, उसे स्वीकार कर लो, और इससे भी अधिक पाने के लिए आन्दोलन जारी रखो।'' अमृतसर में उन्होंने ''जवाबी सहयोग'' के अर्थ की व्याख्या की-''हमसे सहयोग करने की आशा की जाती १ किन्तु इसके लिए पहले कोई ऐसी चीज तो हो, जिसके आधार पर हम सहयोग करें। अत: पहले सरकारी अधिकारी ही यह बताएं कि वह हमसे किस तरह का सहयोग करने को तैयार हैं तभी हम उन्हें यह आश्वासन देंगे कि यदि वे हमसे सहयोग करने को तैयार हैं, तो हम भी बदले में वैसा करने को तैयार हैं। सहयोग कोई एकतरफा मार्ग नहीं है, यह तो पारस्परिक होता है और इसे ही मैं जवाबी कहता हूं।''

फलतः इस सम्बन्ध में कांग्रेस के प्रस्ताव पर गहरा मतभेद उठ खड़ा हुआ। देशबन्धु चित्तरंजन दास सुधारों को बिल्कुल अस्वीकार कर देने के पक्ष में थे, जबकि गांधी जी उन्हें बिना किसी शर्त के स्वीकार कर लेने के पक्ष में थे और तिलक को इन दोनों के बीच का रास्ता पसन्द था। यों उन्होंने यह स्वीकार किया कि ये सुधार उनकी आशाओं के अनुरूप नहीं हैं, फिर भी उनका विचार था कि जहां तक इनसे लाभ उठाया जा सके, वह अवश्य उठाया जाए। आखिरकार कांग्रेस द्वारा स्वीकृत प्रस्ताव में यह घोषणा की गई कि रिफार्म्स ऐक्ट (सुधार अधिनियम) ''अपर्याप्त, असंतोष और निराशाजनक'' हैं। अतः इस प्रस्ताव के जरिए पार्लियामेण्ट से यह मांग की गई कि आत्मनिर्णय के सिद्धान्तों के अनुसार भारत में पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए जल्द से जल्द कदम उठाए जाएं। साथ ही जनता से भी अनुरोध किया गया कि ''वह सुधारों को इस तरह से कार्यान्वित करे कि उससे पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना यथाशीघ्र सम्भव हो सके।''

अमृतसर-कांग्रेस में तिलक की असाधारण व्यावहारिक बुद्धि और सुलझे हुए दृष्टिकोण की धाक जम गई। उन्होंने गांधी जी के नैतिक आधार और चित्तरंजन दास के क्षोभपूर्ण विरोध, इन दोनों की एक साथ सराहना की और कहा कि दोनों के दृष्टिकोण परस्पर विरोधी नहीं हैं। अतः अन्तिम रूप से जो प्रस्ताव पास हुआ है, उसमें ये दोनों दृष्टिकोण संतुलित रूप में स्पष्ट हैं, जिनकी झलक हमें मिल जाती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

लोगों की राय

No reviews for this book