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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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तिलक बनारस में मौजूद थे, लेकिन उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की इस कार्यवाही में सक्रिय रूप से भाग नहीं लिया। खिलाफत को लेकर मुसलमानों के प्रति उन्होंने सहानुभूति तो प्रकट की, लेकिन, लगता है, उन्हें इस बात का सन्देह था कि किसी धार्मिक और वह भी बाहरी क्षेत्र का सवाल भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम का कार्यक्रम कैसे बन सकता है। बाद में चलकर उनकी यह धारणा तब सही भी साबित हुई, जब कमाल पाशा के नेतृत्व में तुर्कों ने स्वयं खिलाफत का अन्त कर दिया और टर्की को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया। बताया जाता है कि असहयोग कार्यक्रम के बारे में तिलक ने गांधीजी से कहा था :

''मैं इस कार्यक्रम को बहुत काफी पसंद करता हूं, लेकिन मुझे इसमें संदेह है कि असहयोग कार्यक्रम में आत्म-निरोध का जो सिद्धान्त रखा गया है, उसे चरितार्थ करने में देश हमारा साथ देगा। मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगा, जिससे आन्दोलन की प्रगति में बाधा पड़े। मैं इसमें आपकी पूर्ण सफलता की कामना करता हूं और यदि आप जनता को अपने साथ ले सकें, तो मैं बड़े उत्साह से आपका समर्थन करूंगा।''

सुधारों के बारे में अमृतसर प्रस्ताव के कार्यान्वयन के लिए स्थापित कांग्रेस डेमोक्रैटिक पार्टी के घोषणापत्र से तिलक के दिलोदिमाग की एक और स्पष्ट झलक मिलती है। अप्रैल के तीसरे सप्ताह में जारी किया गया यह घोषणापत्र महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह तिलक की अन्तिम राजनीतिक वसीयत और आदेश है, जिसकी तुलना गोखले द्वारा छोड़े गए इसी तरह के दस्तावेज से की जा सकती है। इस घोषणापत्र में कहा गया था :

''जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, कांग्रेस डेमोक्रैटिक पार्टी एक ऐसा दल है, जिसे लोकतंत्र में अगाध विश्वास है और जो कांग्रेस के प्रति वफादार है। यह पार्टी भारत की समस्याओं के समाधान के लिए लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों की क्षमता में विश्वास करती है और यह शिक्षा के प्रसार तथा राजनीतिक मताधिकार के विस्तार को अपना सर्वोत्तम अस्त्र समझती है। यह जातपांत और रीति-रिवाजों पर आधारित सभी तरह के नागरिक भेदभाव, साम्प्रदायिकता या सामाजिक बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहती है; धार्मिक सहिष्णुता में विश्वास करती है, हर व्यक्ति के धर्म की पवित्रता को स्वीकार करती है और यह मानती है कि राज्य का यह कर्तव्य और अधिकार है कि वह इसका उल्लंघन न होने दे। यह पार्टी कुरान की आयतों और मुसलमानों के धार्मिक सिद्धान्तों तथा विश्वासों के अनुसार खिलाफत के सवाल का हल ढूंढ़ निकालने के लिए मुसलमानों की मांगों का समर्थन करती है।

''कांग्रेस डेमोक्रैटिक पार्टी मानवता की प्रगति और समस्त मनुष्य जाति के बीच भाईचारे की भावना के विकास के लिए ब्रिटिश कॉमनबेल्थ (राष्ट्रमण्डल) के अन्तर्गत भारत के एकीकरण या, संधबद्धता (फेडरेशन) में विश्वास करती है, किन्तु साथ ही यह मांग भी करती है कि ब्रिटेन सहित ब्रिटिश कॉमनवेल्थ के सभी सदस्य देशों की तरह भारत को भी स्वशासन का अधिकार और बराबरी का दर्जा मिले। यह पार्टी सारे कॉमनवेल्थ के अन्दर भारतीयों के लिए नागरिकता के समान अधिकारों पर जोर देती है और यह चाहती है कि यदि कभी इसका उल्लंघन हो, तो उसका प्रभावशाली ढंग से प्रतिकार किया जाए। यह पार्टी दुनिया में शान्ति कायम रखने, राज्यों की अखण्डता बनाए रखने, राष्ट्रों और जातियों की स्वतन्त्रता और सम्मान की रक्षा करने तथा एक देश द्वारा दूसरे देश का शोषण न होने देने के अस्त्र-स्वरूप राष्ट्रसंघ (लीग ऑफ नेशन्स) का स्वागत करती है।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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