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महामानव - रामभक्त मणिकुण्डल

उमा शंकर गुप्ता

प्रकाशक : महाराजा मणिकुण्डल सेवा संस्थान प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :316
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16066
आईएसबीएन :000000000

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युगपुरुष श्रीरामभक्त महाराजा मणिकुण्डल जी के जीवन पर खण्ड-काव्य

श्री मणिकौशल जी अयोध्या राज्य के महत्वपूर्ण नगर सेठ सम्माननीय वित्त प्रबंधक और प्रभारी थे जिनको महाराजा दशरथ की राज सभा में महत्वपूर्ण पद प्राप्त था। वह अपने लक्ष्मी सुत सम्मान के साथ समस्त समाज के प्रतिष्ठा प्राप्त युग पुरुष थे। जिसका अनुशरण करके उनका पुत्र कुलभूषण बना था।

इस ग्रंथ के प्रणयन में कवि ने यथा समय और यथा योग्य विशेषणों तथा उपमाओं और उपमानों का प्रयोग करते हुए स्त्री तथा पुरुष पात्रों के गुण धर्म एवं चारित्रिक सौन्दर्य का रूपण और विरूपण प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है जो आगे चल कर कथा के उत्कर्ष में भाव व्यंजना का आधार बनेगा। अवध की राजश्री में स्थल सौन्दर्य की महिमा का आधार माता सरयू का पवित्र प्रवाह भी महत्वपूर्ण रहा है स्वयं श्री राम ने वनवास से लौटने पर अपने सभासदों और सखा समूह को सरयू माता की पावनता का दर्शन कराया था। उन्होंने मातृभूमि को तो स्वर्ग से भी अधिक पावन कहा ही था सरयू जी को भी बहुत सम्मान सहित प्रणाम किया था। श्री उमाशंकर जी ने सरयू वर्णन शीर्षक से भाव-सौन्दर्य की सुरुचिपूर्ण अवतारणा करते हुए लिखा है।

कल कल कोकिल सदृश्य कुहूकू कूज रही सरयू तट पास।
उच्छल, अवतल वेगमयी गति तीव्र थपेड़ों का आभास।।
गीतमयी आवृत्ति निरन्तर जल तरंग से होता भान
मानों वेद ऋचाएं बोले मंत्र श्लोक के गूंजे गान।।

इस काव्य के रचयिता के मन प्राण में जहां वस्तु तत्व में जीवन का आकर्षण घुला मिला है, वहीं अपने देश और समाज की राष्ट्रीय अस्मिता (अस्तित्व) का गौरव भी हिलोर मारता लगता है तभी तो उसमें कहा है कि

अवधजनों का आभा मंडल शुभ्र, शुभ्रतामय हो व्याप।
सरयू मां से भारत मां सम कटें सभी दुःख भय संताप।

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