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महामानव - रामभक्त मणिकुण्डल

उमा शंकर गुप्ता

प्रकाशक : महाराजा मणिकुण्डल सेवा संस्थान प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :316
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16066
आईएसबीएन :000000000

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युगपुरुष श्रीरामभक्त महाराजा मणिकुण्डल जी के जीवन पर खण्ड-काव्य

सुकवि उमाशंकर गुप्त परम आस्तिक, ईश्वर भक्त और उदार व्यक्तित्व के धारक अयोध्यावासी वैश्य कुल के गौरव हैं। उन्होंने महाराजा मणिकुण्डल जी के जीवन दर्शन पर आधारित यह चरित्र काव्य सृजित किया है। किसी भी महान कार्य के प्रारम्भ से पहले साहित्य को सभी विधाओं में मंगलाचरण करने की परम्परा है। इस कृति के रचनाकार ने भी अपने हृदय की भक्तिमयी वाणी को ईश्वरार्पित करते हुए प्रथम पंक्तियों में इस प्रकार निवेदन किया है।

चरण नमन हे गणपती, ऋद्वि सिद्धि के संग।
श्री गणेश शुभ लाभ प्रिय, जीवन हो उत्तंग।।
मातु शारदा का मिले रचना को आशीष।
ज्ञान और विज्ञानमय ग्रंथ बने श्रुतिशीष ।।
अर्चन वन्दन कर रहा पूर्ण करो हे ईश।
मणिकुण्डल मानव महा का चित्रण जगदीश।।

अर्चन-वन्दन के क्रम में कवि ने श्री गणेश से श्रुति सम्मत वाणी का वरदान मांगते हुए कहा है।

"श्रुति स्तुति गण ईश की करूँ प्रथम कर जोर।
सकल मनोरथ पूर्ण हो देवों के शिरमौर।।"

श्री गणेश वन्दना के साथ ही माता सरस्वती से विद्या बुद्धि का वरदान तथा सूर्यदेव से उनकी तेजस्विता और प्रखर रश्मियों से उर-अंतर का अंधकार दूर करने का वरदान मांगा है। श्री राम से भक्ति की शक्ति से आत्मा को प्रकाशित करने तथा श्री हनुमान जी से इस महान कार्य को पूर्णता प्रदान करने की प्रार्थना की गई है। सद्साहित्य के महान ग्रंथ 'महामानव' के चरित का प्रकाश करते हुए अपने विरचित महाकाव्य की महिमा का भी अर्चन वन्दना किया गया है। निःसन्देह श्री मणिकुण्डल महाराज ने अपने जीवन में पुरुषार्थ चतुष्ट्य की संप्राप्ति से मनुष्य जीवन की सफलता का जो आलोक विकीर्ण किया है, वह मानव जीवन का पाथेय है। आस्था पूर्वक अपने श्रम से कर्तव्य और कर्म का पवित्रता पूर्वक जो पालन श्री मणिकुण्डल महाराज ने किया था वह उनकी संतति को भी उनकी ही भांति सफलता प्रदान करेगा। इस ग्रंथकार ने ग्रंथ की स्तुति करते हुए उसके महत्व और माहात्म्य का इन शब्दों में स्तवन किया है।

कथामृत जो कोई सुने पूरनमासी मान।
दुर्भावों को दूर कर लाये सुमति सुजान।।
मणिकुण्डल के चरित को श्रद्धासहित सुनाय
पठन श्रवण इस ग्रंथ के जन्म सफल हो जाय।
पुनः नमन मणिग्रंथ को पढ़े श्रवण कर जोर।
आत्म तुष्टि धन्य धान्य हो सुख सम्पत्ति चहुंओर।

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