कविता संग्रह >> महामानव - रामभक्त मणिकुण्डल महामानव - रामभक्त मणिकुण्डलउमा शंकर गुप्ता
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युगपुरुष श्रीरामभक्त महाराजा मणिकुण्डल जी के जीवन पर खण्ड-काव्य
ग्राहता जितनी है उतना ही ग्रहण करता,
वरना ग्रहण सम क्षमता क्षय होती है।।
अनन्त ब्रह्माण्ड में रचे जो अखण्ड दीप,
उनमे सुदीप्त निकटस्थ हित चिन्तक है।
कोटिशः नमन है वन्दन है नीलमणि को,
अभिनन्दनीय सूरज जो सबका हित चिन्तक है।।
गंगा माता की स्तुति में प्रयुक्त शब्द भी हृदय से निकले भावतरंगों में उछलते वारि-कणों से सुशोभित जगत की त्रैताप (सत,रज,तम) को शान्ति प्रदान करने वाली मुक्ति दायिनी की स्तुति के पवित्र प्रमाण है। आगे चलते हुए बनारस पहुंच इस भक्ति की शक्ति में लीन रामभक्त ने शिव शंकर के धाम का दर्शन अर्चन वन्दन किया। अपने सजातीय बन्धुओं के साथ इस पावन तीर्थ में अनेक पुण्य स्थलों और घाटों पर स्नान पूजन से अपनी आत्मा को श्रद्धा के प्रसाद से संपूरित करके पुण्य लाभ प्राप्त किया। यह शब्द भी दृष्टव्य है:
शिव स्तवन किया, तब मणि कौशल के संग।
सब अवध वैश्य गायें, पुलकित थे सब अंग ।।
वाराणसी पति महाशिव-शिव शंकर की स्तुति में प्रयुक्त किये गये शब्दों में विद्युत प्रवाह युक्त चमत्कारिक शक्ति की गतिमयता है। वाणी की ऊर्जा में प्रवाहमान प्राणिमा का ताल लय के साथ गायन छन्द की आलंकारिकता का काव्य गुणों से युक्त चेतना का उमाह है। श्री उमाशंकर गुप्त के साहित्यिक प्रणयन में दिव्य अनुभूति से निकली स्वरमता में अभिव्यक्त की समता का सतत वाणी में विस्तार मनोभावों से युक्त होकर तदनुकूल कोमल कठोर आदि शाब्दिक मनोदशाओं के शब्द चित्र बन कर निकले हैं। यह पंक्तियां इन हृदयस्पर्शी भावनाओं की पोषक है:
त्रिनेत्र, मुण्डमाल, चन्द्रशेखर, विशाल।
जटाजूट गंग धारी जय हो, जय हो महाकाल।।
नीलकंठ, योगिराज, महेश्वर, महादेव।
औघड़दानी भोलेनाथ हे देवाधिदेव।।
हे त्रिपुरान्तकारी, वामदेव सर्पमाल
जटाजूट गंगधारी जय हो, जय हो महाकाल ।।
कैलाशवासी शूलपाणि श्री कंठ दीर्घकाल।
जटाजूट, गंगधारी जय हो, जय हो महाकाल।।
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