ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य हेमचन्द्र विक्रमादित्यशत्रुघ्न प्रसाद
|
9 पाठकों को प्रिय 56 पाठक हैं |
हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!
उनतीस
'एक बार हम लोगों को घर पर मां से मिलने जाना चाहिए। वहां सभी बाल-बाल बच गए हैं--हेमचन्द्र की जवांमर्दी से।'
'क्या कह रही हो ? सरवर सबको मारने गया था ?'
'नहीं, उसकी नजर पार्वती पर रही होगी। वह सिर्फ दौलत के लिए नहीं गया होगा, यह मेरा अन्दाज है।'
यह सुनकर जमाल को धक्का लगा, वह खाट से उठकर बैठ गया। आंखों में क्रोध उबलने लगा।
'खुदा ने हिफाजत की है-हेमचन्द्र के जरिए। हम लोगों को चलना चाहिए।'
'जरूर चलो। पर तुम कैसे चलोगी?' 'जैसे भी हो। इस हालत में मिलने जाना फर्ज है।'
जमाल को लगा कि नूरी ठीक कह रही है। दोनों जाने के लिए तैयार हो गए। कोई रोक नहीं सका, रात हो गई थी। वे दोनों गलियों से होते हुए लक्ष्मीभवन के पिछवाड़े पहुंच गए। आवाज दी। मुंशीजी ने द्वार खोला, दोनों को देख गद्गद हो उठे। कमरे में सादर बैठाया। भीतर संवाद भेजा।
दुर्गा कुंवर और पार्वती–दोनों अपने दुःख को भूलकर आ गईं। जमाल और नूरी-दोनों मां के पैरों पर झुक गए। मां की आंखों में आंसू आ गए। पार्वती भैया-भाभी को देख बेसुध हो रही थी।
जमाल ने चोरी के बारे में पूछा। मां ने सब कह सुनाया। उसका रक्त उबाल खाने लगा।
हेमू के साहस का प्रसंग आया, उसे सन्तोष हुआ।
‘बेटे ! तू तो अब जमाल कहाता है। मैं तो मोहन कहती रही हूं। मैं कैसे बदल जाऊं ?' दुर्गा ने व्यथा के स्वर में पूछा।
'आप वही कहें, मां !' नूरी की शीरी जुबान सुनाई पड़ी।
'हां, मां ! आज सूफी शायर मंझन साहब ने मुझे जमाल मोहन कहा है। आप तो मोहन ही कहें, आप चाहें तो पण्डित गणेशीलाल जी से प्रायश्चित का विधान पूछ लें।' जमाल ने अनुरोध किया।
‘जरूर पूछंगी।"
कल शाम को चांद दिखाई पड़ गया था। आगरा के सिकन्दराबाद मुहल्ले में खुशी की लहर दौड़ गई।
ईद की सुबह आयी, घर-घर में बूढ़े-बच्चे नहा-धोकर नये कपड़े पहनने लगे। लोग ईदगाह जाने की तैयारी में लग गये। इलाहीबख्श ने इस त्यौहार के लिए अपनी तरफ से जमाल के कपड़े बनवाये थे। जमाल नहाकर कमरे में आया, दरवाजे पर इलाहीबख्श ने खुशी-खुशी पायजामा, मिरजई और दुपलिया टोपी जमाल की ओर बढ़ायी। वह इन्हें देखता रह गया। दो क्षण के बाद बोला- 'क्या ये जरूरी हैं ? मैंने इन्हें कभी पहना नहीं है।'
'अपना त्यौहार है, बेटे ! जमाल के बदन पर यही लिबास फबेगा !'
'अपने हिन्दुस्तान में दूसरे देश के लिबास की क्या जरूरत है ?' 'जैसे रोजा को निभा लिया, वैसे आज भी निभा लो।'
'लेकिन मजहब पायजामा और मिरजई में तो नहीं है। क्या खुदा इसी कपड़े को पसन्द करते हैं ?'
'बहस नहीं, जमाल ! मुसलमान हो तो मुसलमानी कपड़े पहनो। ईदगाह भी चलना है।'
नूरी का सर झुका हुआ था, जमाल ने मन मारकर इन कपड़ों को पहना, और नूरी से इजाजत ले इलाहीबख्श के साथ ईदगाह की ओर चल पड़ा। दल के दल लोग जा रहे थे। बूढ़े-बच्चे-जवान उमंग में बढ़े चल रहे थे। लग रहा था कि सिकन्दराबाद के जर्रे-जर्रे में त्यौहार की मस्ती छा गई है।
ईदगाह के मैदान में सैकड़ों सर पश्चिम की तरफ झुक रहे थे। सिजदा कर रहे थे। जमात में नमाज अदा की जा रही थी। नजारा बड़ा ही खुशगवार था।
नमाज के बाद इमाम ने ईद के मौके पर तकरीर देते हुए सबको मुबारकबाद दी। इसके बाद ही सब एक-दूसरे को मुबारकबाद देने लगे। गले मिलने लगे। 'ईद मुबारक' के शब्द गूंज उठे। सिकन्दराबाद के जाने-पहचाने बुजुर्ग और हमउम्र लोग जमाल को इस लिबास में देख मुस्कराकर बधाई देने लगे। उसने होंठों पर हंसी लाकर बधाई को कबूल किया। उनका मुस्कराना उसे अच्छा नही लगा, पर ईदगाह का नजारा उसे अच्छा लगा।
वह अकेला ही लौट आया। नूरी ने इत्र के फाहे और मन्द मुस्कानों के साथ मुबारकबाद दी। और फिर रकाबी में मीठी सेवईं का तोहफा सामने आ गया। उसके चेहरे पर उल्लास झलक उठा, वह सेवईं खाने लगा। नूरी पंखा झलने लगी।
शाही किले के भीतर ईद की नमाज और मुबारकबाद के बाद शाही दरबार की तैयारी हो रही थी। तीसरे पहर दरबार होने वाला था, वक्त नजदीक आ रहा था, इसलिए चहल-पहल बढ़ गई थी। दरबार की आलीशान इमारत सूरज की रोशनी में चमक रही थी।
नौबतखाने में नौबत बजना शुरू हो गया। दरबारी आने लगे। अफगान अमीर, सरदार, जागीरदार और महकमों के वजीर अपनीअपनी जगह लेने लगे। नफीरी की आवाज में ईद मुबारक का तराना कानों में रस घोलने लगा। सभी बादशाह सलामत का इन्तजार करने लगे। हेमू को तलब किया गया था, वह भी मफी शायर मंझन के साथ आ गया। शहनाई के मधर संगीत के मध्य सजे-धजे दरबार में उसने प्रवेश पा लिया। उसे पीछे जगह बता दी गई, वह बैठ गया। मंझन साहब को आगे जगह मिली, हेमू बड़ी उत्सुकता से दरबार की शानशौकत को देखने लगा। दीवार, छत और खंभों की सुन्दर पच्चीकारी मन को मोह रही थी, ऊपर चारों तरफ शीशे और बिल्लौर के कंवल, कन्दीलें, झाड़, फानूस और कुमकुम इमारत की शोभा बढ़ा रहे थे। आगे ऊंचे चबूतरे पर जरीदार मखमल की चादर पर सोने और चांदी से बना अठपहल तख्त मौजूद था। उसके ऊपर जरदोजी का जड़ाऊ छत्र फैला हुआ था। झालरों में जवाहरात झिलमिला रहे थे। रोशनी के लिए शमादान की कोई जरूरत नहीं थी। छत्र के ऊपर पीछे की दीवार पर मखमली पर्दे में दो तलवारों के बीच गरजता शेर सब पर रौब डाल रहा था, यह अफगान सल्तनत का निशान था। शमशीर और नेजे लिए खास फरमाबरदार खड़े थे।
नक्कारे पर चोट पड़ी। नौबत की आवाज ऊंची हो गई, बादशाह सुनहले तामझाम पर आ रहे थे। आगे-आगे हाथी और घोड़ों पर झंडे और अलम फहरा रहे थे। ईरानी वाद्य बज रहा था, पैदल फौज की खास टुकड़ी अपने रंगीन लिबास और रौबदार चेहरे के साथ चल रही थी। बादशाह सलीमगाह सिपहसालार शादी खां, वजीरे आजम और शाही इमाम के साथ अपने तामझाम में दरबार की ओर बढ़ रहे थे।
दरबार के दरवाजे पर वजीरों ने कोर्निश करते हुए बादशाह का इस्तकबाल किया। बादशाह शहनाई की मीठी धुन के साथ दरबार के बीच से होकर तख्त पर पहुंचे। तख्तनशीन हुए। बाहर ईरानी साजों की विशेष धुनें बजने लगीं। कुछ लमहों के बाद सब शान्त हो गया। दरबार की कार्रवाई शुरू हुई।
सबसे पहले शाही इमाम ने कुरान शरीफ की आयतों का पाठ किया। शहंशाहे हिन्द सलीमशाह सूरी को ईद की मुबारकबाद दी। फारसी के एक शायर ने बादशाह सलामत की खिदमत में ईदी पेश की। सूफी शायर मंझन ने भी देशी भाषा अवधी में बधाई गीत सुनाया।
बादशाह ने तख्त से उठकर अपने दरबार के सारे सरदारों और अपनी सारी रिआया को ईद के मौके पर मुबारकबाद दी। दरबार के सारे सरदारों तथा वजीरों ने उठकर इसे कबूल किया।
वकील (मुख्य सचिव) के इशारे पर सदर मुहतसिब ने उठकर बताया कि ईद के मौके पर सल्तनत के सभी मदरसों, मस्जिदों और खानकाहों को सरकारी खजाने से खैरात दे दी गयी है।
बादशाह ने कागज पर नजर डाली। अपनी खुशी जाहिर की, दीवाने-वरीद (जासूसी महकमा) के वजीर ने उठकर कहा कि पंजाब में हमारे जासूसों ने ख्वास खां और हैवत खां नियाजी को जुदा कर दिया है। सूबेदार हैवत खां ने ख्वास खां को अपने पास से हटा दिया है, वह कश्मीर की ओर भाग रहा है। ईद के मौके पर कामयाबी का तोहफा कबूल हो।
सारे दरबार में खुशी का आलम छा गया। हेमू का हृदय नाच उठा, मन में ही बुदबुदाया-'पारो ! मैंने तेरी मौत का बदला ले लिया। तेरी आत्मा को शान्ति मिले। काश, वह कश्मीर घाटी में दबोच लिया जाता।'
दीवाने अरीज का वजीर उठा। सिपहसालार शादी खां से नजरें मिलीं, शादी खां का सर हिला। उसने अफगानी फौज का हाल बयान किया कि हर फौजी छावनी चुस्त और चौकस है। सब जगह कवायद जोर-शोर से चलने लगी है। फौजी भर्ती का काम शुरू है कि वे कमसे-कम सैकड़ों में भर्ती हो जायें। लेकिन अभी शुरुआत है, तादाद कम हो सकती है। कुछ हिन्दी मुसलमानों ने भी भर्ती होने का जोश दिखाया है। हर तरह से जांच कर हम उन्हें ले रहे हैं। हम हिन्दुस्तान की जमीन पर मुगलों के पैर नहीं बढ़ने देंगे।
हेमू प्रपन्न हुआ। यह तो अच्छा लक्षण है। गजराज सिंह, बहादुर खां, विजयवाहन, चौधरी खेमराज और धर्मपाल शर्मा को कहने-सुनने से बात बन गयी। रास्ता खुल गया।
बादशाह ने सिपहसालार शादी खां की ओर देखा, शादी खां ने झुक कर बधाई दी। बादशाह ने शाबासी दी।
आखीर में बादशाह कुछ ऐलान करने के लिए उठे। सारे दरबार में सन्नाटा छा गया, सभी चौकन्ने हो गए। सभी किसी नये ऐलान का इन्तजार करने लगे, सबकी नजरें बादशाह पर थीं। दिल सबके हाथों में था।
बादशाह सलीम शाह सूरी की आवाज गूंजी-'आज ईद के मौके पर हम बहुत खुश हैं। पंजाब की कामयाबी हेमचन्द्र की सलाह की वजह से मिली है, मैंने इनाम देने का वादा किया था। आज वह वक्त आ गया है, मैं बड़े फख्न से हेमचन्द्र को नगर सेठ के नुमाइन्दे की हैसियत से दरबार में जगह देता हूं, उसे जब-तब जरूरत के मुताबिक दीवाने खास में भी बुलाया जा सकता है। मैं चाहूंगा कि हेमचन्द्र मेरे हाथों से खिलअत और सनद कबूल कर ले।'
नफीरी बजने लगी।
मंझन ने हेमचन्द्र को बधाई देते हुए तख्त की ओर भेजा। हेमचन्द्र बादशाह के पास पहुंच गया, तीन बार झुक कर सलाम किया। बादशाह के हाथों खिलअत और सनद को कबूल कर फिर से कोनिश की। और धीरे-धीरे पीछे हट गया।
दरबार में नारे लगे-शहंशाह का इकबाल बुलन्द हो ! बादशाह सलामत जिन्दाबाद ! अफगान हुकूमत जिन्दाबाद !
दरबार की कार्रवाई बन्द हुई। पूरे अदब-कायदे के साथ बादशाह शाही महल की ओर तामझाम में साथ चल पड़े। आसमान में झण्डे लहरा रहे थे। बाजे बज रहे थे।
सारे शहर में बादशाह के इस ऐलान पर बातचीत शुरू हो गयी। हरेक होंठों पर हेमचन्द्र का नाम आ रहा था। किशनपुरा में तो वह आश्चर्य, हर्ष और आदर का पात्र बन गया, लगा कि वह सारे हिन्दुओं का अगुआ बन गया है उसके जरिए अफगान बादशाह ने हिन्दुओं के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया है।
हरखलाल को यह चर्चा अच्छी नहीं लगी। वह अपने श्रीविलास के कक्ष में चक्कर लगाता हुआ बुदबुदाने लगा कि इससे क्या हो जाएगा। इससे भाई सोहनलाल की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ जाएगी। अब न पंडित गणेशो लालजी लक्ष्मीभवन में जायेंगे और न जातिबन्धु। इनकी प्रतिष्ठा तो कौड़ी के मोल बिकेगी। पर इनका प्रभाव तो बढ़ जाएगा। हेमचन्द्र यानी हेम् को दरबार में स्थान मिल गया, इसने कौन-सा जादू कर दिया ! लक्ष्मीभवन के द्वार पर बधाई देने वालों की भीड़ लग रही है। वह क्यों जाय ? सोहनलाल के नौकर को बधाई देने जाएगा? नहीं ! कभी नहीं।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book