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हेमचन्द्र विक्रमादित्य

शत्रुघ्न प्रसाद

प्रकाशक : सत्साहित्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1989
पृष्ठ :366
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1604
आईएसबीएन :00000

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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!


सत्ताईस



रमजान के दस रोज बीत चुके थे। इलाहीबख्श जमाल के व्यवहार से संतुष्ट था, जमाल ने रोजा रखने में कोई घबराहट नहीं दिखायी। उसने अपने घर पर भी व्रत-उपवास किया था, पर इस रोजा-उपवास में प्रतिदिन हाट-बाजार में दौड़-धूप से थोड़ी परेशानी होती थी। कंठ सूख जाता था, इसलिए बाजार मे छिपकर पानी पी लेता था। कमकर सरजू प्रबन्ध कर देता था।

उस दिन रात में नूरी ने सलाह दी कि रोजगार के सिलसिले में दूसरे शहर में चले जाएं तो रोजा की परेशानी से थोड़ी राहत मिल जाएगी। जमाल ने इस सलाह को कबूल किया, और कुछ निर्णय कर लिया। दूसरे दिन वह बाजार में नहीं निकला बाहर, जाने की तैयारी करने लगा।

इलाहीबख्श पूछ बैठा-'जमाल बेटे ! रोजा में कुछ तकलीफ हो रही होगी। अच्छा है कि यहीं रहकर योड़ा आराम करो।'
'जी, नहीं ! कोई खास तकलीफ नहीं हो रही है, इधर कपड़ों की मांग नहीं हो रही है। सोचता हूं कि दूसरे हाट-बाजारों में जाया जाए।
'ईद के बाद जाना ठीक रहेगा। जरूर जाना - इससे तजुर्बा बढ़ेगा और रोजगार भी।'

हो सकता है कि दूसरे शहर में ईद के समय ही कपड़ों की मांग हो ! कल जाना चाहता हूं।'
'लेकिन दूसरी जगह रोजा रखने में दिक्कत होगी।'
'बिलकुल नहीं...! मेरा निश्चय पक्का होता है, मैं ईद के पहले लौट आऊंगा।'
'मुहल्ले के बुजुर्ग और नौजवान क्या कहेंगे ?'
'आप समझाने की तकलीफ करेंगे, विश्वास करना पड़ता है और विश्वास कराना पड़ता है।'
'वो तो ठीक है, रोजा और नमाज छूटना नहीं चाहिए।'
'आप भरोसा रखें।'
इलाहीबख्श ने भरोसा कर लिया। लेकिन उसके दिल में आ रहा था कि कहीं रोजा तोड़ न दे, लेकिन कितना दबाव डाले ! सरवर तंग कर सकता है।

जमाल ने नूरी से कल बाहर जाने की बात कही। नूरी उदास हो गयी। अपने जमाल से जुदा होना तकलीफदेह लगा, उसने ही सलाह दी थी जिससे थोड़ी राहत मिले। लेकिन राहत दिलाने के साथ जुदाई की हालत आ गयी। उसका दिल घबरा उठा, वह बोल उठी-'आप जुदा होना चाहते हैं, लगता है मुझसे ऊब गए हैं।'

'नूरी ! इंसान अपनी जिन्दगी से जल्दी नहीं ऊबता। सौदागर बनने पर जहां-तहां जाना ही पड़ेगा, यादों के सहारे सफर कटेगा, और -फिर उछाह के साथ पैर लौटने लगेंगे।'
'यहां तो ख्वाबों और ख्यालों में जीना बड़ा दुशवार लग रहा है।'

'कभी-कभी ख्वाबों और ख्यालों में जीना अच्छा लगता है, नूरी ! चांद का छिपना और उग आना बुरा तो नहीं लगता।'
'तो आप सब्र का इन्तहान लेना चाहते हैं ?'
'हम दोनों का इम्तहान तो हर कदम पर हो रहा है। तुम खुशीखुशी विदा दो।'
'खुशी-खुशी रुखसत करूंगी, लेकिन जुदा नहीं हो सकूँगी।'
'इसका क्या मतलब है, नूरी ?'
'मतलब यह है कि तसव्वुर में आपकी तस्वीर झलकती रहेगी। उससे जुदा नहीं हो सकूगी।'
'यह तो मैं कहना चाह रहा था, मेरी बात तुमने छीन ली।'
दोनों मुस्करा उठे।
दूसरे दिन जमाल ने बैलगाड़ी पर कपड़ों को लादा, सरजू को साथ ले लिया। खुद भी बैठ गया, गाड़ी मथुरा की ओर चल पड़ी। सरवर अली ने दूर से ही देख लिया।

सरवर ने सोचा कि जमाल हफ्ते भर के लिए दूसरे शहर में जा रहा है। वह गैरहाजिर रहेगा, उधर हेमचन्द्र भी बाहर गया हुआ है। माकूल वक्त है, वह कुछ कर सकेगा। वैसे रमजान में चुप रहना चाहिए। सबकी नाराजगी हो सकती है, लेकिन ऐसा मौका बार-बार नहीं आएगा। अब नूरी को छेड़ना बेकार है, लेकिन जमाल याने मोहनलाल से बदला लेना है। इसे छोड़ना नहीं है। हेमचन्द्र के आने पर दिक्कत हो जाएगी। आज रात में उधर जाना है और फिर देहली की ओर निकल जाना है। जमाल गुस्से में हाथ-पैर पटकता रह जाएगा। शानदार बदला होगा, बदला और दीन की खिदमत एक साथ। वाह, जनाब सरवर अली के आला दिमाग का ही ऐसा ख्याल हो सकता है ! वह अपने साथियों से मिलने शराब की दुकान को ओर चल पड़ा।

रात आ गयी, हेमू मुंशो हरसुख लाल के साथ लौट आया। थक गया था। गाढ़ी नींद में सो गया।

सरवर अधरी रात में चुपके से अपने तीन साथियों के साथ बाग से टप कर भीतर आ गया। कोई आवाज नहीं हुई। सरवर निश्चिन्त था कि हेमू और मुंशी जी गैरहाजिर हैं। इसलिए वह लक्ष्मीभवन के पिछवाड़े से घुसा, भवन के आंगन में पहुंच गया। पैरों की आवाज सन्नाटे में फैल गयी। सोहनलाल की नींद टूट गयी, पैरों की आहट बढ़ी। आंखें खुल गयीं, पास की कोठरी से दुर्गा कवर के साथ पार्वती सोयी थी। सरवर खिड़की के पास पहुंचा, सोहनलाल मोमबत्ती जलाने की कोशिश कर रहे थे। सरवर कुछ क्षणों के लिए अकचकाया। सोहन लाल हुलास और हेमचन्द्र को पुकारने लगे। द्वार भी खोल दिया, सरवर का एक साथी कमरे में घुस आया। सोहनलाल के मुंह को बन्द करने की कोशिश की, उधर दुर्गा कुंवर की नींद टूट गयी। खिड़की से झांका, काली लम्बी छायाओं को देख ‘चोर-चोर' बोल उठी। सरवर अपने साथी के साथ दुर्गा कुंवर के कमरे में आ गया।

लक्ष्मी वाटिका के कक्ष में सोये हेमू को प्यास लगी। वह पानी पीने उठा, आवाज सूनी ! वह तलवार उठाकर चल पड़ा। वह लक्ष्मीभवन के भीतर पहंच गया। सेठ जी के कक्ष की ओर बढ़ा। सरवर का साथी तलवारधारी को देख उल्टे पैरों भागा। हेमू झपटा। पास के कक्ष से चीखने की आवाज आयी। सरवर पार्वती को पकड़ कर कमरे से बाहर आ गया। ओसारे से आंगन की ओर बढ़ा। हुलास ने भी भवन के पिछवाड़े मोमबत्ती जला दी थी। हल्का-हल्का प्रकाश आने लगा। हेमू ने सरवर को ललकारा। उसका एक साथी तो बाग की ओर भाग चुका था। सरवर के हाथ में लाठी थी, कमर में खंजर था। दूसरे के पास भाला था। दोनों हेमू से मुकाबला करने के लिए आगे आए। हेमू के प्रहार से पार्वती सरवर के बन्धन से मुक्त हो गयी। वह कांपती हुई अपनी मां के पास आयी। सोहनलाल भी उसके पास आ गये। हेमू दोनों से मुकाबला कर रहा था। उसके प्रहार से लाठी और भाले टुकड़े-टुकड़े हो गए थे। उसका साथी भागने लगा, हेमू ने सरवर को पकड़ लिया।

'चोर-चोर' की आवाज से वस्ती के लोग जग गए थे। वे लाठीभाले लेकर आ गये। मुंशी हरसुख लाल ने गश्ती करते सिपाहियों को खबर दी, सिपाही भी पहुंच गए। सिर्फ पड़ोस के शाह हरखलाल की नींद नहीं टूट सकी थी।

लोगों ने सरवर के एक साथी को पकड़ लिया। इधर हेमू ने सरवर को सिपाहियों के हवाले कर दिया, पर क्रोध में उफनता रहा। अंधेरी रात में सिपाही कैदियों को ले जा रहे थे। हेमू का क्रोध धीरे-धीरे शान्त होने लगा। बस्ती के लोगों ने हेमू को बधाई दी कि उसके कारण चोरी नहीं हो सकी। हेमू इस कांड के सूत्र को समझने की कोशिश कर रहा था।

सोहन लाल और दुर्गा कुंवर दोनों श्रीकृष्ण का नाम ले रहे थे। उन्हें लगा कि भगवान ने ही हेमू को रक्षा के लिए भेज दिया है। उनके मन में हेमू के प्रति प्यार उमड़ आया। पार्वती का कांपना भी धीरे-धीरे बन्द हो गया था। वह मोमबत्ती के हल्के-हल्के प्रकाश में खड्गधारी हेमचन्द्र को देख रही थी। और सोच रही थी कि उस बार ये पारो को बचा नहीं सके थे, इस बार तो इन्होंने पारो को बचा लिया है।

हेमू ने एक बार सबको देखा, सबको विश्राम करने का परामर्श दिया, और फिर अपनी तलवार संभाले वाटिका की ओर चला गया। किसी की इच्छा नहीं थी कि वह आंखों के सामने से दूर जाय। पर वह दूर हो रहा था, विश्राम की बात तो ठीक ही है।

हेमू सोचता हुआ अपने कक्ष में आया कि वह उस बार पारो को बचा नहीं सका था। देर से संवाद मिला था। जब सब कुछ समाप्त हो चुका था, तब वह दौड़कर गया था केवल राख पा सका था। इस बार चूक नहीं हुई। समय पर पहुंच गया, हाथ में तलवार भी थी। योगी शिवनाथ की प्रेरणा थी, इस बार पार्वती (पारो) को बचा लिया। तो यह सरवर मोहनलाल से बदला लेने आया था ! मोहनलाल की बहन के अपहरण से बदला लेना चाहता था। सोच कर चला होगा कि हेमू बाहर गया है, पर वह संयोग से आ गया था। सरवर को नूरी नहीं मिली तो पार्वती को चुराने आया। नूरी का बदला....! उसके रहते कैसे हो सकता था ? वह भस्मी के डब्बे के पास झुक आया।

 

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