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हेमचन्द्र विक्रमादित्य

शत्रुघ्न प्रसाद

प्रकाशक : सत्साहित्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1989
पृष्ठ :366
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1604
आईएसबीएन :00000

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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!


इक्कीस



हेमू मुंशी हरसूख लाल के साथ रसद के दफ्तर में पहुंचा। मंशीजी ने गल्ले के मोल का कागज मीर मुशी को दिया, मीर मुंशी ने सेठ सोहन लाल का हाल-समाचार पूछा, मुंशी जी ने बता दिया और तब मीर मुन्शी ने हरसुख लाल से हिसाब-किताब करने के लिए वक्त मांगा। इसका अर्थ समझ में आ गया, हेमू भी समझ गया, उसे स्मरण आया कि सेठजी ने आज्ञा दे दी है, मंशीजी ने हेम को संकेत दिया. पर वह रुका रहा। मीर मुंशी कभी कागज को देखता था और कभी मुन्शी हरसुख लाल को। मशी जी की आंखें हेम की आंखों को समझ रही थीं। उसी समय दीवाने अरीज की ओर से रसद दफ्तर में खबर आयी कि अगर हेमचन्दर आये तो भेज दिया जाए। इस खबर को पाकर सारा दफ्तर भौंचक्का हो उठा। सभी हेम को देखने लगे, हेमू ने मशी चाचा से कहा-'आप बैठकर हिसाब करा लें, मैं शीघ्र आ रहा हूं। क्यों मीर मुंशी साहब ! हिसाब हो जाएगा न ?'

'जरूर हो जाएगा।' मीर मुंशी ने जवाब दिया, साथ ही भुगतान की पर्ची बनाने को कह दिया।

हेमू मन्द मुस्कान के साथ दीवाने-अरीज के दफ्तर की तरफ जाने लगा। फौजी महकमे को दीवाने अरीज कहा जाता है, यह हेमू को मालूम था। वह वहां जा पहुंचा, इस महकमे का वजीर हेमू को देखकर बहुत खुश हुआ। साथ बैठे सल्तनत के सिपहसालार शादी खां को बताया कि यह नौजवान सेठ सोहन लाल का कारिन्दा है और नुमाइन्दा भी, लेकिन इसका दिमाग सियासी है। इसकी सलाह पर बादशाह से लेकर वजीर तक सभी ने गौर किया है।

शादी खां के रौबीले चेहरे का असर हेमू पर पड़ा, उसने झुककर सलाम किया। शादी खां ने उसकी पीठ थपथपा दी, तब उसने मुस्कराने की कोशिश की।

वजीर हेमू को लेकर शाही महल की ओर चला, हेमू समझ गया कि आज फिर बादशाह से भेंट होगी।

दीवानखाने में सभी वजीर मौजूद थे। शायर मंझन भी दिखायी पड़े, वह भी फौजी महकमे के वजीर के साथ पहुंचा। बादशाह सलीमशाह आये, अदब कायदे के साथ सभी उठकर खड़े हो गए। सबने कोनिश की, बादशाह कुर्सी पर बैठे, सभी बैठ गये। बादशाह की नजर अपने वजीरों पर दौड़ गयी, देख लिया कि सभी हाजिर हैं। शायर मंझन की आंखों में एक चमक दिखायी पड़ी। हेमू की आंखों में उत्कंठा तैर रही थी, पर वह पूरी विनम्रता से सर को थोड़ा झुकाकर बैठा हुआ था। एक बार उसका सर ऊपर उठा, बादशाह सलामत की आंखें उसकी आंखों से मिल गयीं, उसका हृदय धड़क उठा। उसने बादशाह की आंखों को पढ़ने का प्रयास किया, लगा कि उनमें उसके प्रति प्रशंसा भाव है, वे कुछ बोलेंगे, वह उनके शब्दों की प्रतीक्षा करने लगा।

बादशाह सलीमशाह के शब्द गूंज उठे- 'आज हम सूफी शायर मंझन साहब की मसनवी के कुछ हिस्से सुनेंगे।'

सूफी शायर की आंखों की चमक बढ़ गयी। हेम की उत्कंठा शान्त हो गयी। शायर मंझन ने उठकर कहा -'जहांपनाह ! आपकी इजाजत से मसनवी में आये सौन्दर्य का वर्णन यानी हुश्न का बयान आपके सामने रख रहा हूं, किस्सा यों है-

कनकगिरि के राजा सूरजभान को एक साधु की सेवा से पुत्र पैदा हुआ। पंडितों ने कुमार का नामकरण मनोहर किया। वह बारह साल तक पढ़ता रहा, फिर उसका राजतिलक हुआ। एक दिन अप्सराओं ने नींद में बेखबर मनोहर को देखा। महारस के राजा विक्रमराज की राजकुमारी मधुमालती के रूप से उसकी तुलना की, नींद में ही उसकी सेज को मधुमालती के पास पहुंचा दिया गया। जब मनोहर की नींद टूटी तो उसने पास में एक सुन्दरी को देखा। उसके हृदय में पूर्व जन्म की प्रीति जग गयी, वह उसके सौन्दर्य को निहारने लगा-

अति सुरंग रसभरे अमोला, जुग सोभित मुख मद्धि कपोला।
मतिहीनी किछु उकित न आई मधु कपोल बरनौं केहि लाई।
नहिं जानौं दहुं केइ तप सारा, जो बरसिहि यह निधि सयंसारा।
अस कपोल बिधि सिरे सोहाए, जे न जाहिं किछु उपमा लाए।
मानुस दहुं बपुरा केहि माहीं. देवता देखि कपोल नवाहीं।

सुर नर मुनि गंधर्व गन काहुं न रहेउ गिवान।
देखि कपोल नारि कै निहचै टरै महेस धियान॥

नींद टूटने पर मधुमालती ने पास में एक अनजान नौजवान को देखा, वह पूछ बैठी, राजकुमार मनोहर ने उत्तर दिया --

अबहीं नींदि गए उठि जागेउं, देखि रूप तबु जीवन खांगेउं।
पुब्ब पुन्नि आहेउ किछु मोरा, जेई मुख आनि देखाएउ तोरा।
कै करवत ओहिं जनम देवाएउं, ताहि पुन्नि तोहि दरसन पाएउं।
कै मन बंछित बरेहुं पयागा, कलपेउं सीस पुब्ब के भागा।
पाएउं पुब्ब तेहि तिरि फल तोही, धनि धनि पुब्ब पुन्नि जो मोही।

मंझन ने बादशाह की ओर देखा, उनसे इशारा पाकर और आगे का वर्णन पढ़ा जा सकता है। बादशाह बहुत खुश नजर आ रहे थे, लेकिन उन्होंने आगे पढ़ने के लिए इशारा नहीं किया, वे बोल उठे-बहुत अच्छा बन पड़ा है, मंझन साहब ! आपने हिन्द की जुबान में मसनवी लिखकर बड़ी कामयाबी हासिल की है। जायसी साहब के पास पहुंच गए हैं, और फिर कभी।'

शायर ने अपनी जगह ले ली, सारे वजीरों की आंखों में प्रशंसा का भाव झलक रहा था, सभी सर हिला रहे थे, शायर सन्तुष्ट लग रहे थे।

बादशाह की आवाज गूंजी-'हेमचन्दर !'
हेमू उठकर खड़ा हो गया।
'हमने तुम्हारी सलाह पर गौर किया है, सबसे मशवरा किया है, सबने तुम्हारी सलाह की ताईद की है और आज मैं उस सलाह के मुताबिक कार्रवाई करने का हुक्म दे रहा हूं।'
हेमू ने सर झुकाकर अपनी विनम्रता प्रकट की, पर अन्तर की उत्कंटा शान्त होकर उल्लास में धीरे-धीरे प्रकट हो रही थी।

बादशाह फिर बोल उठे-'तुम अपना काम करते चलो, हेमचन्दर ! सेठ के रोजगार को संभालते रहो, मैं जब-तब तुम्हें याद कर लूंगा। ईद के मौके पर दरबार में तुम्हें मैं इनाम भी दूंगा।

'आपने मेरे जैसे एक अदने सौदागर की सलाह पर ख्याल किया है, उसे मान देकर मुझे शाबासी दी है, मुझे तो बहुत बड़ा इनाम मिल गया, सुल्ताने हिन्द !'

बादशाह ने इशारे से बैठने को कहा और दीवाने वजारत, दीवाने अरीज और दीवाने वरीद के वजीरों को पंजाब में जल्द कार्रवाई करने का हुक्म दिया।

वकील ने कहा-'ईद के खुशगवार मौके पर बादशाह सलामत को कामयाबी की खुशखबरी जरूर मिल जाएगी।'

'मैं यही चाहता हूं और रमजान महीने की तैयारी मौलाना साहब की राय से हो। हर मुसलमान रोजा जरूर रखे, पाक जिन्दगी जिए, कहीं चोरी या बदमाशी न हो, कड़ी नजर रखी जाय, यह हुक्मनामा सरकार और परगने तक पहुंच जाना चाहिए, हर परगने का शिकदार हुक्म को अमल में लाए।'

वकील ने उठकर इस हुक्म को कबूल किया। दीवाने इंशा का मीर मुंशी इन बातों को लिख रहा था।

सिपहसालार शादी खां कुछ कहना चाह रहे थे। बादशाह ने इजाजत दी।

शादी खां ने कहा-'जब मुगल सरदार हुमायूं हिन्दुस्तान की सरहद के करीब आ गया है, तो फौज पर ख्याल करना होगा। अफगान अमीर तो नाराज होते जा रहे हैं, लेकिन हमारी फौज वफादार है, नयी भर्ती जरूरी है, लाहौर से सासाराम तक फौजी भर्ती और कवायद चालू हो जाएं, यह आपकी खिदमत में एक छोटी-सी सलाह है।'

दीवाने अरीज के वजीर ने सलाह की ताईद की।

बादशाह सलीमशाह ने कुछ देर तक गौर किया, फौजी भर्ती का हुक्म दे दिया।

सिपहसालार शादी खां को इस फैसले से तसल्ली हुई। हेमू को कुछ स्मरण आ गया, वह कुछ कहने के लिए उतावला होने लगा, पर उसे लगा कि यह उतावलापन ठीक नहीं है, वह चुप ही रहा।

बादशाह ने बैठक खत्म कर दी, वे उठकर जाने लगे, सभी खड़े हो गए थे, नफीरी बजने लगी थी, फौजी महकमे के वजीर और सिपहसालार भी साथ-साथ चल पड़े, हेमू भी पीछे-पीछे आ गया, शादी खां ने पूछा-

'क्या बात है, हेमचन्दर !'

बादशाह के कदम रुक गए, पीछे मुड़कर देखा, सभी हेमू के उतावपलेन से थोड़ा नाराज लग रहे थे, लेकिन बादशह ने इशारे से बुलाया।

हेमू निकट आकर बोल उठा-- 'एक बात जानकारी में आयी थी, वह हुजूर की खिदमत में पेश कर देना चाहता है।'

'बोलो, कौन-सी बात है ?'

'सीकरी की तरफ गया था, जानकारी मिली कि वहां के सफी फकीर मुगलों को पसन्द करते हैं, शायद बाबर को मदद मिली थी। आज भी वहां हुमायूं का तरफदार मिल सकता है, वहां नजर रखी जा सकती है, ऐसी मेरी अर्ज है, वैसे जो मुनासिब हो, हुजूर हुक्म फरमायें।'

यह सुनकर बादशाह का चेहरा संजीदा हो गया। उन्हें याद आ गई कि बाबर को सीकरी के फकीर की दुआ मिली थी, लेकिन खानकाह पर नजर रखना मुनासिब तो नहीं होगा। उनके अन्दर कशमकश चलने लगी, कुछ फैसला नहीं कर सके, लेकिन वे बोल उठे-'ठीक है, हेमचन्दर ! तुम्हारी बात पर गौर करूंगा, तुम्हें फिर शाबासी दे रहा हूं, मैं बहुत खुश हूं कि मुझे हिन्दुओं से मदद मिलने लगी, फौजी भर्ती में हिन्दुओं को भी लिया जाए, अगर वे चाहें तो।'

बादशाह ने हेमू को लौटने की इजाजत दी, वे खुद शाही रहम की ओर बढ़ गए।

हेमू शाही महल के दूसरे तल्ले से नीचे उतरने लगा। वह आज बहुत प्रसन्न था, उसे लगा कि उसका आगरा जाना सार्थक हो रहा है, वह ख्वास खां को दण्ड दिलवा सकेगा, पारो की मृत्यु का प्रतिशोध ले सकेगा और विदेशी मुगलों को भारत की सीमा से दूर रखने में वह अफगान बादशाह को कर सकेगा। अफगान अमीर अफगान बादशाह नाराज हो रहे हैं, हिन्दू राजा कुचल दिए गए हैं, शेष राजा बहुत

दूर-दूर हैं, पर इस देश की प्रजा को कुचल कर शान्ति से राज्य करता बहुत कठिन है। लगता है कि अफगान बादशाह हिन्दू प्रजा का सहयोग चाह रहे हैं। वह इस सहयोग-सम्बन्ध की नींव डाल सकता है। अवसर आ गया है, एक ओर हुमायूं के आक्रमण की शंका है, दूसरी ओर अफगान अमीरों में असन्तोष है, कुछ अमीर दबा दिए गए हैं, कुछ-कुछ हैं। इस स्थिति में एक ही रास्ता है कि अफगान बादशाह हिन्दू प्रजा का सहयोग लें। वे हिन्दुओं को जजिया कर से मुक्त करें, फौजी भर्ती में हिन्दुओं को सम्मिलित करें, राजपूतों, जाटों और अहीरों को फौज में होना चाहिए। वह भी प्रयास करेगा।

वह रसद-दफ्तर मे आ पहुंचा। मुंशी चाचा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसे देखते ही कहा- 'बहुत समय लगा दिया, हेमू !'

'मुंशी चाचा ! शाही हुक्म से गया था और शाही हुक्म से लौटा हूं, इसलिए विलम्ब हो गया, पर इस दफ्तर में तो विलम्ब नहीं होना चाहिए।'

'अब तुम्हें वजीर याद करने लगे हैं, हम तुम्हें क्यों तकलीफ देंगे, सिर्फ तुम्हारी दस्तखत बाकी है।' मीर मुंशी ने कहा।

हेमू ने भुगतान की पर्ची पर दस्तखत की, थैली में सिक्कों को गिनकर रखा और सलाम-बन्दगी कर मुंशी चाचा के साथ लौटने लगा। उसी समय मीर मुंशी ने व्यंग्य किया—'क्यों मुंशी जी ! मोहन लाल के जमाल अहमद बन जाने पर हेमचन्दर साहब आए हैं ? सेठ ने उसे घर से निकाल दिया है न ?'

मुंशी जी ने चाहा कि कानों को हथेलियों से बन्द कर लें, हेमू भीतर से उफनने लगा।
मीर मुंशी ने जहरीली मुस्कान के साथ कहा-'जमाल अहमद को तंग नहीं करना, हेमचन्दर साहब ! अब वह हमारी बिरादरी में हैं।'

हेमू ने अपने को संभाला। मुंशीजी को देखा और उत्तर दिया'मोहन लाल कुछ भी बन जायें, वे हमारे छोटे सेठ हैं। हम तो प्यार करने वालों पर प्राण निछावर करते हैं, उनके प्यार की खुशबू से हम अभी तक होश में नहीं हैं।'

मीर मुंशी टकटकी लगाकर हेमू की ओर देखता रह गया। मुंशी चाचा ने हेमू को चल देने का इशारा कर दिया।

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