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हेमचन्द्र विक्रमादित्य

शत्रुघ्न प्रसाद

प्रकाशक : सत्साहित्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1989
पृष्ठ :366
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1604
आईएसबीएन :00000

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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!


पैंसठ



हेमचन्द्र ने अफगान राज के पुराने वजीरों में से अधिकांश को थोड़े हेरफेर के साथ पुनर्नियुक्त कर दिया था। एक तो सिकन्दरशाह सूर के साथ चला गया था, दूसरे की मौत हो गई थी। तीसरा वयोवृद्ध हो चुका था, चौथा उथल-पुथल में छिपा हुआ था। इसलिए कुछ नये लोग मंत्रिमंडल में सम्मिलित कर लिये गए। सर्वोपरि कार्य करने की व्यवस्था को बदलने का प्रयत्न होने लगा।

राजसभा में सभी उपस्थित थे, शहनाई बज रही थी। राजा हेमचन्द्र उपस्थित हुए, साथ में गुप्तचर प्रधान था। वजीरे आजम के इशारे पर प्रधान ने बताया कि महाराज की वीरता और फौज के सैलाब के सामने मुगल सरदार सिकन्दर खां और तारदीबेग को भागना पड़ा है। मुगलों में दहशत है, वे काबुल लौट जाना चाहते हैं। सभी मुगल सरदार अकबर को काबुल से नयी फौज लेकर आने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन बैरम खां लौटना नहीं चाहता है। इसी उधेड़-बुन में चौदह साल का अकबर पड़ा हुआ है, वह खुद कुछ फैसला नहीं कर पा रहा है।

हमारे जासूस उनमें खौफ फैलाने में कामयाब हो रहे हैं। रास्ते का रोड़ा है-बैरम खां। वह तारदी बेग से खफा है। उसने उसे कैद कर रखा है और वह हमारी फौज में बगावत कराने की साजिश कर रहा है। उसके जासूस भी इधर आ रहे हैं।

हम मुगलों के जासूसों से होशियार हैं। कुछ तो गिरफ्तार हो चके हैं।'-हेमचन्द्र ने आश्वासन दिया।

सरवर अली अपने चार साथियों के साथ हथकड़ियों में लाया गया। वह गुर्राकर देख रहा था और सबके सर झुके हुए थे।

'सरवर अली! कभी औरत के लिए और कभी दौलत के लिए फसाद कर रहे हो। खूबसूरत रक्कासा को बादशाह आदिलशाह सूर के पास भेजा है बरबाद करने के लिए, और अब गद्दारी कर रहे हो !'

हेमचन्द्र ने भर्त्सना की।

'काफिर के खिलाफ खड़ा होना गद्दारी नहीं, जेहाद है।' सरवर ने बेखौफ जवाब दिया।

‘गैर मुल्की हमलावर का साथ देना गद्दारी है, सरवर ! इस गद्दारी के सारे सबूत मिल गए हैं, गद्दारों को सख्त सजा दी जाय।' वजीरे आजम ने राय दी।

'इन सबको कैदखाने में रखा जाय, सरवर को तो हरखलाल के साथ कैदखाने की अंधेरी कोठरी में....न्यायाधीश अन्तिम निर्णय देंगे।' राजा हेमचन्द्र ने आदेश दिया।

सरवर और जमाल की आंखें मिलीं। लगा कि दोनों एक-दूसरे को आंखों की आग से जलाकर खाक कर देंगे। वजीरे आजम के इशारे पर कैदी कैदखाने की ओर ले जाए गए।

राज सभा ने सन्तोष की सांस ली।

उसी समय पूर्वी क्षेत्र-गंगा-यमुना के दोआब से कुछ ग्रामीण आ गए। उन्हें राजसभा में प्रवेश की अनुमति मिली, सभी फटेहाल थे। कुछ दरबारी तो उन्हें देखकर खीझ रहे थे।

हेमचन्द्र ने दोआब के क्षेत्र का समाचार पूछा। ग्राम प्रमुख ने उठकर कहा—'महाराज ! गांवों में अकाल पड़ा हुआ है। सावन-भादों की फसल नहीं हो सकी है, कार्तिक की फसल की भी आशा नहीं है। हम परगने के हाकिमों से बार-बार निवेदन कर चुके हैं, कोई सुनवाई नहीं है। खाने के लिए अन्न नहीं है, खिराज और मालगुजारी कहां से दें! किसान और कमकर जन-सभी गांवों को छोड़कर भागने की सोच रहे हैं, लेकिन कहां जायें ? लड़ाई और उथल-पुथल में कहां जायें, क्या करें?

'इसलिए हम अपने महाराज के पास आए हैं।'

'यहां से निराश नहीं होना है, राज प्रजा का ही है। राज के लिए प्रजा नहीं है। मैं स्वयं अपनी प्रजा से मिलने चलूंगा और यथासम्भव प्रबन्ध करूंगा।' राजा हेमचन्द्र ने घोषणा कर दी।

लेकिन बैरम खां से निपटने के लिए आपका दिल्ली में रहना जरूरी है। उसे मौका नहीं देना है, जल्द कूच करके उसे हम कुचलना चाहेंगे।'-शादी खां ने सलाह दी।

'जंग की तैयारी आप करेंगे, सालारे-आजम ! मैं दोआब से होकर आता हूं।'

'फौज के लिए अनाज, कपड़े और हथियार-सभी चाहिए।'

'सब हो जाएगा, मुझे थोड़े समय के लिए प्रजा के पास जाने दीजिए। प्रजा भूखे मरे तो राजा किसलिए!'

ग्रामीण प्रसन्न हो उठे, पर शादी खां इस ऐलान से सन्तुष्ट नहीं थे। राजा को लाहौर की ओर चलना है, अभी रिआया के पास नहीं जाना।

दूसरे दिन राजा हेमचन्द्र योगी शिवनाथ और चौधरी नरवाहन के साथ ग्रामीणों के लिए दोआब क्षेत्र की ओर चल पड़े। सोचते जा रहे थे-सारे संकट मेरे लिए इकट्ठे हो रहे हैं ! उधर युद्ध की आग धधक रही है। विदेशी मुगलों से मुक्ति के लिए युद्ध करना है। हम कब तक विदेशी हमलों के शिकार होते रहेंगे ! लेकिन इधर अकाल की आग में प्रजा झुलस रही है, यह मेरी अग्नि-परीक्षा है।

गांव का क्षेत्र आरम्भ हो गया। खेतों में छोटे-छोटे पौधे सूख रहे थे, पेड़ों के पत्ते गिर रहे थे। पशु मिट्टी सूंघ-सूंघकर निराश हो रहे थे। जहां-तहां मरे पशुओं की लाशें पड़ी हुई थीं, कौवे और गीध मंडरा रहे थे।

गांव में बूढ़े-बच्चे-जवान भूख से बेहाल दिखाई पड़े, न पेट में अन्न था और न शरीर पर कपड़े। उनका हाहाकार हृदय को छेदने लगा। नंगे और भूखों की भीड़ हर गांव में दिखाई पड़ी। राजा हेमचन्द्र बढ़ते गए, सर्वत्र भुखमरी का दृश्य था।

गांवों के चौधरी और परगने के हाकिम आए। शिकदार, अमीन और पटवारी को लापरवाही के लिए कसा गया। इस अकाल और भुखमरी के लिए उनको जिम्मेवार ठहराया, सबके सर झुके हुए थे।

राजा हेमचन्द्र ने आदेश दिया-'राज्य के अन्नागार से सबको अन्न दिया जाय। बाजार में कम मोल पर कपड़े और कम्बल बिकेंगे। जो बिल्कुल दरिद्र हैं, उन्हें कपड़े मुफ्त दिए जाएं, और इस वर्ष खेत की मालगुजारी की माफी रहेगी। जजिया की वसूली नहीं होगी।

'ये सारे हाकिम और मुलाजिम राहत के काम में लगेंगे। लापरवाही होने पर सख्त सजा मिलेगी।

'और योगीराज शिवनाथ तथा चौधरी नरवाहन इस सहायता कार्य की देखभाल करेंगे।'

योगी जी तथा चौधरी नरवाहन ने शीश हिलाकर इस निर्णय को माना।

राजा हेमचन्द्र ने दुःखी स्वर में कहा–'योगिराज ! इस स्थिति में मुगलों से मुकाबला कैसे होगा? उधर विशाल सेना के लिए अन्न, वस्त्र और शस्त्रों की व्यवस्था हो रही है। खजाना खाली हो रहा है, और इधर यह अकाल...!'

'महाराज ! अकाल ने भयानक चोट की है, पर आप कभी अधीर नहीं हुए हैं। आज भी अधीर नहीं होना है।'-योगी ने समझाया।

'हम सारी व्यवस्था करेंगे। आप निश्चिन्त होकर बैरम खां की ललकार का जवाब दें।-नरवाहन ने कहा।

'मैंने कभी पीठ नहीं दिखाई है, आज भी पीठ नहीं दिखाऊंगा। पर यह हाहाकार नहीं देखा जाता। धरती मां क्या चाहती हैं ?'

'धरती मां चाहती हैं कि आप इतिहास में नया अध्याय जोड़ दें। पारो की चिता की लपट हो या इस अकाल की लपट. 'आप प्रेरणा लेकर अग्रसर हों।'-योगी ने एक नया विश्वास जगाया।

'हां, गुरुदेव ! आपके आशीर्वाद से मेरा संकल्प आगे बढ़ेगा। इस संक्रांति और संघर्ष में एक नये भारत का जन्म होगा।'

'तों अब आप राजधानी जायें। यहां की चिन्ता हम पर..!'योगी शिवनाथ और नरवाहन ने एक साथ कहा।

उस रात हेमचन्द्र को नींद नहीं आ सकी। बायीं तरफ प्रजा का हाहाकार सुनाई पड़ रहा था, दाहिनी तरफ बैरम की ललकार थी। वे करवट लेते रहे, रात के तीसरे प्रहर में नींद आई तो सपने मंडराने लगे।

एक बूढ़ी मां पास आकर बोल पड़ी-'हम पसीने से अन्न उपजाते हैं, और राजे-महाराजे तलवार दिखाकर राजभवन खड़ा कर लेते हैं। राजभवन छोड़कर यहां क्यों आए ?'

चौधरी नरवाहन को क्रोध आ रहा था। राजा ने उन्हें शांत करते हुए कहा- 'दुखिया मां से मिलने आया हूं। देर से खबर मिली, इसलिए विलम्ब से आया हूँ।

'बेटे को बेचना चाहती हूं। खरीदकर बुढ़िया पर दया करोगे ?'
- बुढ़िया ने थरथराते स्वर में कहा।
'इस राज में बेटा-बेटी को बेचना-खरीदना पाप है, मां !'

'तो तुम मुझे मार डालो अपनी तलवार से या एक मुट्ठी अन्न दे दो।....वह अफगान बादशाह लूट कर कहां भाग गया है ?'

'ऐसा मत कहो, मां! राजा से भूखे पेट के लिए अन्न पाना अधिकार है। सबको अन्न मिलेगा, और मुझे आशीष दो।'

'भूखे पेट आशीष !...इस फटे आंचल से आशीष !'

हेमचन्द्र की नींद टूट गई। ललाट पर पसीना आ गया।

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