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ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य

हेमचन्द्र विक्रमादित्य

शत्रुघ्न प्रसाद

प्रकाशक : सत्साहित्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1989
पृष्ठ :366
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1604
आईएसबीएन :00000

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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!


चौंसठ



पार्वती देख रही थी कि पूजा के समय महाराज का ध्यान टिक नहीं पा रहा है। खिले हुए फूल हैं, दीप जल रहा है। अगर की सुगन्ध फैल रही है, अष्ट गन्धयुक्त धूप है। फिर क्यों इतने विकल हैं ? किले में चारों तरफ सैनिकों का युद्धाभ्यास चल रहा है। मन उधर ही भटक रहा है क्या ? मुगलों से युद्ध करना है। जब तक मुगलों पर विजय नहीं होती, तब तक न राज्य की नींव दृढ़ होती है और न इस नींव पर महल खड़ा हो पाता है, यही चिन्ता है !

दासी ने द्वार पर झांका, संवाद मिला कि जमाल साहब के साथ साईंदास आए हैं। उसे प्रसन्नता हुई, परन्तु वह उन्हें कैसे बताये ?

हेमचन्द्र ने आंखें खोल दीं। पद्मासन से उठकर सहज ढंग से बैठ गए। हाथ जोड़ा, सामने पार्वती-पारो दिखाई पड़ी। पार्वती सामने से हटने लगी।

वे बोल उठे-'पारो ! तुम देवी हो। जुड़ी हुई हथेलियों को देख कर हट क्यों रही हो ?'

'मैं पूजा में सहयोगिनी हूं, पूज्या नहीं हूं।'

'रम्या भी पूज्या होती है।'

'अभी तर्क-विनोद के लिए समय नहीं है, महाराज ! बाहर भैया के साथ साईंदास आए हैं।'

'तो चलो मिल लिया जाय। पूजा ध्यान के बाद संत-समागम उचित ही है।'

दोनों राजभवन के बाह्य कक्ष में आए। वहां जमाल मोहन के साथ साईंदास बैठे थे, राजदंपति ने नमस्कार किया। साईंदास ने सद्गुरु कबीर का नाम लेकर आशीर्वाद दिया।

जमाल मोहन ने कहा-'साईंदास जी मिलना चाह रहे थे। पर राजभवन में आने से हिचक रहे थे। मेरे अनुरोध पर आपने आने का कष्ट किया है।'

'मुझसे मिलने में संकोच क्यों ?' हेमचन्द्र ने कहा।

'यही तो मैं कह रहा था।'

हेमचन्द्र ने साईंदास से सद्गुरु वाणी के लिए अनुरोध किया।

साईंदास ने कहना आरम्भ किया-'सद्गुरु ने सभी मानवों के लिए एक राम एक रहीम की बात की है, और मानव-मानव के बीच के भेदभाव को मिटाने का यत्न किया है। उनका दिव्य सन्देश फैल रहा है। हिन्दू राम-रहीम की एकता की बात को समझ रहे हैं। हिन्दी मुसलमान भी समझ जाते हैं, पर ये अरबी-फारसी-तुरुक जानकर भी सुनना नहीं चाहते। सूफी मिजाज के तुरुक जरूर सुनते-समझते हैं। हिन्दू राम-रहीम की बात को मान लेते हैं, लेकिन शूद्रों और अछूतों के प्रति इनका व्यवहार बुरा है। सद्गुरु इन्हें सद्बुद्धि दें। राज की ओर से भी कोशिश हो कि मानव-मानव के बीच का फर्क दूर हो।'

हेमचन्द्र ने इसे सद्गुरु का आदेश समझकर स्वीकार किया। साईदास ने सहर्ष सूचना दी कि सूफी शायर मंझन साहब ने आपके प्रति शुभकामनाएं भेजी हैं। वे दूर निकल गए हैं, वे इधर आयेंगे तो अवश्य ही मिलेंगे।

उसी समय संवाद मिला कि धर्मपाल शर्मा का आगमन हुआ है। हेमचन्द्र मिलने को बेचैन हो उठे, शीघ्र ही उन्हें बुलाया।

पैरों की आहट सुनाई पड़ी, धर्मपाल आ गए।
'आइए, धर्मपाल शर्मा ! राजदूत का स्वागत है !'
'महाराज की जय हो !' धर्मपाल निकट आकर झुका। हेमचन्द्र ने बैठने का अनुरोध किया और यात्रा का समाचार पूछा।
'महाराज! आपके विक्रम और पराक्रम की चर्चा सर्वत्र है। दिल्ली विजय पर सबको आश्चर्य है, मुगलों के संकट का भी अनुमान है। परन्तु सभी राजे-महाराजे एक-दूसरे से अलग-अलग रहने में अपना गौरव मानते हैं। सबको अपनी शक्ति पर विश्वास है, वे तलवार और अभिमान के धनी हैं। परन्तु वे एक साथ मिल नहीं सकते। अखण्ड भारत की चिन्ता नहीं करना चाहते। पता नहीं कैसे महाराणा सांगा ने इन्हें जोड़ रखा था ! एक-दो ने मेरे अनुरोध पर विचार करने का वचन दिया है। अधिकांश ने आपके लिए खत लिखने के बहाने से इनकार किया है। कुल मिलाकर निराशा ही मिली है।'

हेमचन्द्र साईंदास की ओर देखने लगे। साईंदास ने कहा-'महाराज ! यह रामभक्त की आवाज नहीं है, यह तो रोगी की आवाज है। इस रोग की दवा संत कबीर की वाणी है, उन्हें यह सब बताना पड़ेगा।'

जमाल मोहन ने श्रद्धा से सर हिलाया। राजा हेमचन्द्र के चेहरे पर चिन्ता की रेखाएं उभर आयीं। दो क्षण के बाद क्षोभ झलक आया, और वे क्षुब्ध स्वर में बोले - 'इस पवित्र भारतभूमि पर एक तुर्क गुलाम ने तुर्क शासन आरम्भ किया था। कुतुबुद्दीन ऐबक एक खरीदा हुआ गुलाम था। उस विदेशी दास के शासन को सबने सहा, दिल्ली गवाह है। तुगलक खानदान को शुरू करने वाला भी एक गुलाम था, उस गुलाम ने देश पर भी हुकूमत की।

'बर्बर तैमूर और चंगेज खां के रक्त से जन्मे मुगल सारे देश को धमकी दे रहे हैं, और हमारे राजे-महाराजे अपने अभिमान की कोठरी में बन्द हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

'आज एक परिवर्तन आ रहा है, विजेता अफगान-पठान रिआयाहिन्दुओं के साथ बैठने लगे हैं। सबने मिलकर मुगलों को पराजित किया है। सबने मुझे मुगलों से अन्तिम संघर्ष के लिए अवसर दिया है, पर ये राजपूत इस सत्य को समझने को तैयार नहीं हैं। यह देश का दुर्भाग्य है, धर्मपाल !

'मुगल मुझे काफिर कहकर गालियां दे रहे हैं, और अपने राजा राणा-रावल भी मेरी उपेक्षा कर रहे हैं। यह अविवेक है।

'मैं अकेला रक्त दूंगा, प्रजा साथ दे रही है। मेरा संकल्प कालगति से एक बिन्दु पर मिलकर आगे बढ़ रहा है, इसे कोई रोक नहीं सकेगा।'

हेमचन्द्र चुप हो गए, झरोखे से बाहर देखने लगे। नील गगन में एक पंछी उड़ान भर रहा था, वह अकेला था। नहीं, वह अकेला नहीं था, पीछे-पीछे अनेक पंछी उड़ रहे थे। वह अकेला ही बढ़ रहा था, पर आकाश अछोर, अनन्त।

धर्मपाल ने कहा-'महाराज ! पांच हजार राजपूत, जाट और मीणा योद्धा शस्त्रधारण कर मेरे साथ आए हैं। वे आपके साथ रक्त देने के लिए कटिबद्ध हैं।'

हेमचन्द्र का मन स्वस्थ हुआ, उन्होंने मन्दस्मिति से इस संवाद पर हर्ष प्रकट किया। उनसे मिलना चाहा। साईंदास मंगल-कामना करते हुए विदा हुए, जमाल मोहन साथ ही चला गया।

हेमचन्द्र धर्मपाल के साथ अपने नते सैनिकों के बीच आये। सबने राजा हेमचन्द्र का जयघोष किया। हेमचन्द्र ने हाथ जोड़कर सबका अभिवादन स्वीकारा। उनके प्रमुखों से प्रत्यक्ष मिलकर परिचय पाया, अपनी धरती मां के लिए रक्त तर्पण का आह्वान करते हुए उनकी रणकला को देखने की इच्छा की।

सैनिकों ने दुन्दुभि और डंके की आवाज पर अपनी रणकला को बारी-बारी से प्रशित किया। तलवार और भाले के ये प्रदर्शन रोमांचकारी थे। राजा हेमचन्द्र का मन बांसों उछलने लगा, सबको बधाई दी।

सहसा धर्मपाल ने घोषणा की- 'महाराज हेमचन्द्र विक्रमादित्य, जिनके विक्रम से मुगल थर्रा उठे हैं, आपके सामने अपनी रणकला प्रस्तुत करेंगे।'

जयघोष से आकाश गूंजने लगा। हेमचन्द्र ने दोनों हाथों में तलवार लेकर अपनी रणकला को दिखाया। जयकार के शब्द नंगी तलवारों की कौंध के साथ वातावरण को भेद डालते थे। राजपूताने से आए सैनिक और सेनानी अपने दिल्ली-आगमन पर संतुष्ट हुए, उनका उत्साह बढ़ गया।

उसी समय शादी खां जमाल मोहन के साथ आते दिखाई पड़े। हेमचन्द्र उधर ही उन्मुख हुए। शादी खां पास आ गए, देखा कि चेहरे पर थोड़ी परेशानी है।

शादी खां ने कहा-'महाराज ! इस बूढ़े जईफ को आराम करना चाहिए, लेकिन आराम नहीं मिलता। इनसे एक खबर सुन लें, और खबरदार हो जायें।

जमाल ने बताया-'सरवर और मुल्ला दो मुगलों के साथ दिल्ली में मौजूद हैं, वे पठान सिपाहियों को आपके खिलाफ भड़का रहे है।'

'चाचा जी ! मुझसे राय लेने की क्या जरूरत थी ! उन्हें फौरन कैद किया जाय। किसी की गद्दारी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
'यही हो।' यह कहकर शादी खां जमाल के साथ सरवर और मुल्ला को गिरफ्तार करने चल पड़े।

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